Eid 2021: कोरोना वायरस संक्रमण काल में ईदी भेजने के लिए परेशान न हों, इंटरनेट मीडिया का लें सहारा
Eid 2021 ईद पर भी दूर ब्याही बहनों के घर ईद की त्योहारी सेवई और कपड़े न पहुंचाने का मलाल है। ऐसे में बहनों का दिल रखने के लिए भाइयों ने अभी से उनके एकाउंट में इंटरनेट मीडिया संसाधनों के जरिए ईदी स्थानांतरित करने की शुरूआत कर दी है।
प्रयागराज, जेएनएन। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी ईद के पर्व पर कोरोना संक्रमण का असर दिख रहा है। ऐसे में बहनों और बेटियों को त्योहारी के रूप में सेवइयां, कपड़ा और ईदी पहुंचाने पर वैश्विक महामारी कोरोना के चलते ग्रहण लग गया है। इस दैवी आपदा के चलते ईद की तमाम खुशियां काफूर हो गई हैं। हालांकि ऐसे कठिन समय में लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है। ईदी पहुंचाने के लिए आप भी इंटरनेट मीडिया का सहारा ले सकते हैं।
कोरोना ने ईद की खुशियां पर लगाया लगाम
अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इस बार भी न नए कपड़े सिलवाए और न ही ईद को लेकर कोई खास तैयारी करते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर इस बार भी ईद बेहद सादगी के साथ घरों में रहकर मनाने का फैसला किया गया है। शासन की मंशा के मुताबिक इस बाबत इमाम-ए-ईदगाह ने भी मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज न पढ़ाई जाने का एलान करते हुए घरों में ही ईद की दो रिकात शुक्राने की नमाज अदा करने की मुनादी करवाया गया है।
आप भी जानें, इंटरनेट मीडिया से ऐसे भेजें ईदी
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण लोग घरों में कैद हैं। वह सैकड़ों वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन कैसे करें, इसे लेकर परेशान हैं। परंपरा के अनुसार बहन और बेटियों को उनके ससुराल ईदी के रूप में कपड़ा, सेवई और त्योहारी पहुंचाया जाता है। हालांकि इसका उन्हें समाधान भी मिल गया है। कस्बे के मोहम्मद हारून, अली हसन, इबाद उद्दीन, मोहम्मद शारिक आदि ने बताया कि इस ईद पर भी दूर ब्याही बहनों के घर ईद की त्योहारी सेवई और कपड़े न पहुंचाने का मलाल है। ऐसे में बहनों का दिल रखने के लिए भाइयों ने अभी से उनके एकाउंट में गूगल पे, पे फोन आदि इंटरनेट मीडिया संसाधनों के जरिए ईदी स्थानांतरित करने की शुरूआत कर दी है।
ईद-उल-फितर पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने 624 ईसवी में मनाया था
मुस्लिमों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व ईद उल फितर रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने के अगले दिन मनाई जाती है। इस्लामिक मान्यता के अनुसार सबसे पहली ईद उल फितर पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था। ईद उल फितर मनाने का मकसद यह है कि पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे इबादत करते हैं रोजा रखते हैं और क़ुरआने करीम की तिलावत करते हैं अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं। जिसका अजर या उजरत मिलने के दिन को ईद उल फितर कहते हैं। इस बा बरकत महीने में गरीबों को फितरा (दान) देना वाजिब है, जिससे वो लोग भी ईद की खुशियों में बराबर के शरीक हो सकें।