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ईसी के सदस्य ने खोला कुलपति के खिलाफ मोर्चा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व कार्यपरिषद के वरिष्ठतम सदस्य प्रो. सीएल खेत्रपाल ने कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कहा कि वह मनमानी पर उतारू हैं। कहा कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर रजिस्ट्रार को हटाया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 06:03 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jun 2018 06:03 AM (IST)
ईसी के सदस्य ने खोला कुलपति के खिलाफ मोर्चा
ईसी के सदस्य ने खोला कुलपति के खिलाफ मोर्चा

जासं, इलाहाबाद : रजिस्ट्रार कर्नल हितेश लव की सेवा समाप्त होने से नाराज इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व कार्यपरिषद के वरिष्ठतम सदस्य प्रो. सीएल खेत्रपाल ने कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया कि कुलपति प्रो. रतन लाल हांगलू ने विश्वविद्यालय को तमाशा बना दिया है। वह मनमानी कर रहे हैं। कार्यपरिषद की बैठक को भी मजाक बनाकर रख दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कार्यपरिषद के सदस्यों को न एजेंडा दिया जाता है और न ही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कोई चर्चा की जाती है। उन्होंने सवाल उठाया कि देश में किसी विश्वविद्यालय में टर्म नियुक्ति में प्रोबेशन पीरियड नहीं होता तो फिर रजिस्ट्रार के मामले में प्रोबेशन पीरियड क्यों रखा गया? रजिस्ट्रार की नियुक्ति भी पांच साल के लिए होती है और कुलपति की भी। अगर रजिस्ट्रार को प्रोबेशन पीरियड में रखा गया तो कुलपति क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि रजिस्ट्रार के ऊपर अनर्गल और अनापशनाप आरोप लगाकर पद से हटा दिया गया तो कुलपति के ऊपर भी एमएचआरडी की दो-दो जांच कमेटियों ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। इस आधार पर कुलपति खुद नैतिक आधार पर इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? देश की 35 साल तक ईमानदारी से सेवा करने वाले ऐसे अधिकारी जिसके दामन पर एक भी दाग नहीं है। जो सिर्फ आर्डिनेंस व स्टैच्यूट के आधार पर ईमानदारी से काम कर रहा था। जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है उसपर अनर्गल आरोप लगाकर बाहर कर दिया जाता है। यह सरासर अन्याय है। उधर, विवि प्रशासन ने उनके आरोपों को सिरे से खारिज किया है।

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इस्तीफे से इनकार किया

नाराज ईसी सदस्य प्रो. खेत्रपाल के इस्तीफे की भी खासी चर्चा रही, हालांकि उन्होंने इससे इन्कार किया। कहा कि ऐसी बैठकों में आने से क्या फायदा? जिसमें ज्यादातर सदस्य कुलपति की हां में हां मिलाते हों। उन्होंने कहा कि कर्नल हितेश लव के मामले पर उन्होंने अपनी बात रखने की कोशिश की, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। ऐसी स्थिति में मैं इविवि आकर क्या करूंगा। उन्होंने कहा कि कार्य परिषद की बैठकों में एजेंडे और मिनट्स का पता ही नहीं चलता। किसी भी चीज पर कन्फर्मेशन के लिए फोर्स किया जाता है। कहा कि शिक्षक भर्ती को लेकर इतने सारे विवाद हैं। भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। लेकिन कभी भी इसपर चर्चा तक नहीं की जाती। उन्होंने सवाल किया कि देश कि किसी भी यूनिवर्सिटी में पहले ऐसा नहीं हुआ कि रजिस्ट्रार के काम की समीक्षा इतने अल्प अवधि में की जाए। जांच कमेटी के लिए ईसी से मंजूरी भी नहीं ली गई। प्रो. खेत्रपाल ने रविवार को हुई कार्य परिषद की बैठक को ही अवैध बताया। कहा कि इसके लिए उन्होंने एक पत्र भी कुलपति को बैठक में दिया, जिसपर प्रो. केबी पांडेय और एक अन्य सदस्य प्रो. आरआर तिवारी के भी हस्ताक्षर हैं। कहा कि वह इविवि के छात्र भी रहे हैं। ऐसे में वह इस विश्वविद्यालय को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि कार्य परिषद की बैठक में प्रो. गौतम देशी राजू कमेटी की रिपोर्ट अभी तक क्यों नहीं रखी गई। कहा कि मंत्रालय ने अभी तक जितनी भी कमेटियां भेजी हैं, उसपर विचार विमर्श की सख्त जरूरत है।

प्रो. सीएल खेत्रपाल वर्ष 1998 से 2000 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं। वह सेंटर ऑफ बायोमेडिकल मैगनेटिक रेजोनेंस, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस लखनऊ के फाउंडर डायरेक्टर भी हैं। 81 वर्षीय प्रो. खेत्रपाल का कार्य परिषद में यह लगातार दूसरा टर्म है।

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वर्जन

अगर कार्यपरिषद के सदस्य प्रो. सीएल खेत्रपाल मीटिंग को अवैध बता रहे हैं तो बैठक में भाग क्यों लिया। 3000 रुपये सीटिंग चार्ज व टीए-डीए क्यों लिया। उन्होंने अपने विरोध पत्र को काउंसिल के फोरम में नहीं रखा। उसे मीडिया में देने का क्या मतलब। रजिस्ट्रार हितेश लव के खिलाफ हाईकोर्ट ने कार्यपरिषद की बैठक में निर्णय लेने को निर्देशित किया था। अगर वे ईसी के निर्णय से असहमत थे तो नोट ऑफ डिसेंट क्यों नहीं लगाया। वे चांसलर के नॉमिनी हैं उन्हें अपनी बात उचित फोरम पर रखनी चाहिए। इस तरह की बात करना उन्हें शोभा नहीं देता है।

प्रो. हर्ष कुमार, जनसंपर्क अधिकारी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय।


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