Move to Jagran APP

पठारी क्षेत्र बारा, शंकरगढ़ में कमाऊ पूत साबित हो रहे बैशाखनंदन Prayagraj News

प्रयागराज के शंकरगढ़ में सपेरे गधा पालन कर लाखों की कमाई कर रहे हैं। ईंट-भट्ठों और पत्थर व कोयले की खदानाें में इनकी अधिक मांग है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 30 Aug 2019 08:43 AM (IST)Updated: Fri, 30 Aug 2019 08:43 AM (IST)
पठारी क्षेत्र बारा, शंकरगढ़ में कमाऊ पूत साबित हो रहे बैशाखनंदन Prayagraj News
पठारी क्षेत्र बारा, शंकरगढ़ में कमाऊ पूत साबित हो रहे बैशाखनंदन Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। बोलचाल में बैशाखनंदन यानी गधा शब्द आने पर मन में चाहे जो नकारात्मक बोध हो, लेकिन वह अच्छी आय का जरिया भी हैं। प्रयागराज के पठारी क्षेत्र बारा और शंकरगढ़ में गधा पालन आजीविका का बड़ा साधन बन गया है। कई गांवों में आदिवासियों और सपेरों के लिए यह गधे कमाऊ पूत साबित हो रहे हैैं। ईंट-भट्ठों, पत्थर व कोयले की खदान में इनकी अधिक मांग है।

loksabha election banner

पठारी इलाकों में गधे सैकड़ों लोगों की जिंदगी में खुशहाली ला रहे हैं

किसी समय महानायक अमिताभ बच्चन ने गुजरात के गधों की ब्रांडिंग की थी। वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गधों को लेकर टिप्पणी की थी, जो सियासी हलचल की वजह बनी थी। खैर, बात प्रयागराज की करें तो यहां पठारी इलाकों में गधे सैकड़ों लोगों की जिंदगी में खुशहाली ला रहे हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर यमुनापार के पठारी क्षेत्रों में पांच-छह वर्षों से यह चलन शुरू हुआ। गधों से ईंट-भट्ठोंव पत्थर तथा कोयला खदान में ढुलाई आदि का काम लिया जाता है। गधों की वजह से होने वाली कमाई के चलते घरों में टीवी, फ्रिज, कूलर आदि वह सब कुछ है जो कभी इन आदिवासी व सपेरों के लिए सपना था। 

समूह बनाकर हो रहा गधा पालन

शंकरगढ़ के कपारी, पवरी, जज्जीपुरवा, लोहगहरा आदि गांवों में चार सौ से ज्यादा लोग गधा पाल रहे हैैं। महिलाओं की तादाद ज्यादा है। वे समूह बनाकर गधा पालन कर रही हैैं। उजाला समूह की ज्ञानवती, रैना, अनारपति, रेशम, नन्हिया व कलापति बताती हैं कि चित्रकूट में हर साल दीपावली पर गधा व खच्चरों का मेला लगता है। यहां से वे चार-पांच माह के गधों के बच्चों को आठ से 10 हजार रुपये में खरीदती हैं।

बच्चे ढाई से तीन साल में बड़े हो जाते हैैं

गधे के बच्चे ढाई से तीन साल में बड़े हो जाते हैैं तब इसी मेले में इन्हें 25 से 30 हजार रुपये में बेच दिया जाता है। सिमरन समूह की सविता, रूपपति, अंगीता, ललिता और बबली के मुताबिक गधा पालन में ज्यादा खर्च नहीं लगता। जंगली घास ही इनका चारा है। सुबह जंगल में छोड़ दिया जाता है। शाम को स्वत: ही लौट आते हैैं। शारदा समूह की मनोरमा, रेखा व राधा स्वीकार करती हैं कि गधा पालन से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।

आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक बोले

आजीविका मिशन के जिला प्रबंधक शरद कुमार सिंह कहते हैं कि समूहों को रिवाल्विंग फंड के रूप में 15 हजार रुपये दिए गए हैैं। साथ ही एक लाख 10 हजार रुपये सामुदायिक निवेश के रूप में भी दिए गए हैैं, जिसमें प्रत्येक सदस्य दो हजार चार सौ रुपये प्रतिमाह लौटाते हैैं।

स्वत: रोजगार उपायुक्त ने कहा

स्वत: रोजगार उपायुक्त अजीत कुमार सिंह कहते हैं कि इलाके के 32 से ज्यादा समूह ऐसे हैैं, जिनकी आय कई गुना बढ़ गई है। महिलाएं स्वावलंबी हो रही हैैं। बच्चों की बेहतर पढ़ाई से लेकर घर तक पक्के हो रहे हैैं। कई महिलाओं ने तो ट्रैक्टर आदि भी खरीद लिया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.