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'आयुर्वेद का खजाना' प्रयागराज में भी, इसे संजोया है डॉ. शालिग्राम ने, आप भी जानें खासियत

डॉ. शालिग्राम को आयुर्वेद का एक और भारद्वाज कहा जाता है। उन्‍होंने 15 बीघे जमीन पर आयुर्वेद का खजाना संजो रखा है। उनके बगीचे में औषधीय पौधों की कई किस्‍में लगी हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 12:31 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 08:51 AM (IST)
'आयुर्वेद का खजाना' प्रयागराज में भी, इसे संजोया है डॉ. शालिग्राम ने, आप भी जानें खासियत
'आयुर्वेद का खजाना' प्रयागराज में भी, इसे संजोया है डॉ. शालिग्राम ने, आप भी जानें खासियत

प्रयागराज, [ज्ञानेंद्र सिंह]। त्रेता युग में मनुष्य को बीमारियों से निजात दिलाने के लिए आयुर्वेद को धरती पर लाने का श्रेय प्रयागराज के भारद्वाज मुनि को जाता है। उस समय वेद में 32 औषधियां थीं, जिसे बौद्ध काल में वाणभट्ट ने पांच सौ के करीब पहुंचा दिया। सबसे प्राचीनतम और चामत्कारिक चिकित्सा पद्धति आज कोरोना वायरस के संकट काल में अहम मानी जा रही है। प्रयागराज में दूसरे भारद्वाज के रूप में आगे आए हैं डॉ. शालिग्राम गुप्त।

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पांच हजार औषधीय पौधे जुनून की गवाही देते हैं

शहर के मुट्ठीगंज निवासी लगभग 85 वर्षीय डॉ. गुप्ता ने यमुना के किनारे बसवार गांव में 15 बीघे जमीन पर आयुर्वेद का खजाना संजो रखा है। लगभग साढ़े तीन दशक में पांच हजार औषधीय पौधे उनके जुनून की गवाही देते हैं। ये पौधे उनके संतानों की तरह हैं, जिनके कंधों पर उन्होंने आयुर्वेद के वैज्ञानिक शोध का जिम्मा छोड़ रखा है।

वह परिवार से ज्यादा वक्त इन्हीं पौधों को देते हैं

बीएचयू से आयुर्वेद में डिग्री लेने के बाद इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) में दो वर्ष तक शोध करने वाले डॉ. गुप्त न सिर्फ औषधीय पौधे लगाए, बल्कि दूसरों को प्रेरित भी किया। वह परिवार से ज्यादा वक्त इन्हीं पौधों को देते हैं। मुट्ठीगंज में घर में ही क्लीनिक चलाने वाले डॉ. गुप्त सारी कमाई इन्हीं पौधों पर खर्च करते हैं। वह बताते हैं कि स्वस्थ समाज के लिए पर्यावरण तो उनकी चिंता है ही, इसके साथ ही आयुर्वेद का पुनरुत्थान हो, यह उनका बड़ा उदे्श्य है।

डॉ. गुप्त बोले, आयुर्वेद का आधार भी प्रकृति है

डॉ. गुप्त का कहना है कि प्रकृति के साथ जीवन कैसे बिताएं, यही भारतीय संस्कृति रही है। आयुर्वेद का आधार भी प्रकृति है। पेड़ हमेशा देवता की तरह पूजे गए। चाहे पीपल हो, बरगद या नीम सभी पूजे जाते हैं। इनमें छिपा औषधीय गुण ही इनका आशीर्वाद है। 1985 से पौधे रोपने लगे थे। हर साल चार-पांच सौ पौधे रोपते हैं। इस साल भी अब दो सौ खुद तथा आठ सौ पौधे अन्य लोगों से लगवा चुके हैं।

बाग में ये पौधे हैं

डॉ. गुप्त के बाग में चंदन, सर्पगंधा, एलोवेरा, सतावर, गुगलू, घृतकुमारी, बड़हल, लिसोड़ा, बेल, स्वर्ण क्षीरी, लता कस्तूरी, खैर, सूरन, अरूस, तालीश पत्र, धव, अंगूर सफा, गुंजा, कमरख, अपामार्ग, विधारा, कालमेघ, शरीफा, रामफलस, शिकाकाई, पलाश, पुर्ननवा, चिरौंजी, कचनार, ब्राह्मी, सेमल, हिज्जल, पोई, साबूदाना, दालचीनी, अपराजिता, शंखपुष्पी, रुद्राक्ष, सौंफ, अंजीर, रतनजोत, बालम खीरा, शहतूत, जायफल, तुलसी, रीठा, अजवाइन, अर्जुन, खस जैसे औषधीय पौधे लगे हैं।


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