हिंदी दिवस 2020 : भाषा उच्च वर्ग से नहीं, आम जनता के दिलों से सब पर राज करती है : डॉ. मुदिता
डॉक्टर मुदिता तिवारी आर्यकन्या डिग्री कालेज प्रयागराज में हिंदी की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। उन्होंने हिंदी दिवस पर अपना विचार कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है।
प्रयागराज, जेएनएन। आज यानी सोमवार को पूरा देश हिंदी दिवस मना रहा है। ऐसे में प्रयागराज में भी तैयारी है। वहीं आर्यकन्या डिग्री कॉलेज की हिंदी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर मुदिता तिवारी का भी अपना विचार है। वह कहती हैं कि भाषा की व्यापकता तब तक बरकरार रहती है, जब तक बदलती परिस्थितियों के द्वारा दी जा रही अभिव्यक्ति की चुनौतियों को उठाने में वह पूर्णतः सक्षम रहेगी। उदारीकरण के बाद सहसा लगा था कि वह हिंदी जो परतंत्र भारत में संघर्ष की मुख्य भाषा बनी रही, अब अंग्रेजी के आगे स्वतंत्र भारत में हथियार डाल देगी। हालांकि भाषा उच्च वर्ग से नहीं बहुसंख्य आम जनता के दिलों से सब पर राज करती है। उदारीकरण के बाद अलीशा चिनाय, बाबा सहगल आदि नए ढंग के कपड़ों में नए स्टेज और बैकग्राउंड के साथ नयी धुन और नए राग में इंडो पॉप लेकर आए।
बोलीं, हिंदी दिवस के निकट आने पर ही हिंदी भाषा के प्रति बढ़ती है चिंता
उन्होंने कहा कि 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस के पास आने पर हिंदी भाषा के प्रति हमारी चिंता बढ जाती है। वहीं हिंदी पखवारा खत्म होते ही यह चिंता काफूर हो जाती है। क्या सचमुच भाषा को मानव की चिंता की जरूरत है या ये मानव है जो अभिव्यक्ति के लिए बेचैन रहता है और भाषा उसको संभालती है? निस्संदेह भाषा का कद एक मानव के वजूद से बहुत बड़ा और व्यापक है। ’मेड इन इंडिया' में सब बदला लेकिन भाषा वही रही हिंदी। हिंदी अब एक नए लुक में हमारे सामने थी। जब तक लोग समझते इस नई हिंदी को लोगों ने गुनगुनाना शुरू कर दिया। ये न संस्कृतनिष्ठ हिंदी थी, न ही शीन काफ दुरुस्त किए हुए उर्दू, यह तो बोलचाल के शब्दों के साथ इंग्लिश का तड़का थी, यानी हिंगलिश थी। हिंदी ने स्वयम को बदली हुई फिज़ा में ऐसा लिफ्ट किया कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपने विज्ञापनों को हिट करने के लिए उसका सहारा लेने लगीं।
नई शिक्षा नीति ने मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा की वकालत की है
डॉक्टर मुदिता कहती हैं कि और अब नई शिक्षा नीति ने मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा की वकालत की है। भारत के अलावा विश्व में कई अन्य देश भी बहुभाषी हैं। ऐसे में शिक्षा ही नहीं अन्य कार्यों में भी भाषा का चुनाव एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में उभरता है। तमाम देशों में हुए असंख्य शोध में यह सिद्ध हो गया है कि प्रारंभिक शिक्षा यदि मातृभाषा में हो तो विद्यार्थियों को उसके कष्टप्रद मानसिक अनुवाद से नहीं गुजरना पड़ता है। वस्तुओं, क्रियाओं, संकल्पनाओं, विशेषताओं का मानसिक प्रतिबिंब भी बालक में भाषा के सहारे ही विकसित होता है | दूसरी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने पर उसे पुनः नए सिरे से इन मानसिक प्रतिबिंबों को मानस में विकसित करना पड़ता है। यह एक दिन में संभव नहीं, अतः बालक का एक लम्बा समय अर्थच्युत अनुकरण में बीत जाता है।
कहा, भारत की भाषाएं हिंदी के लिए चुनौती नहीं हैं
हिंदी केवल मातृभाषा ही नहीं है, इसे भारत की राष्ट्रभाषा का भी गौरव प्राप्त है। यह हिंदी भाषा की ही क्षमता थी कि धर्म, व्यापार और साहित्य ही नहीं राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम भी इसका सहारा लेने को बाध्य हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों के साथ ही साथ धार्मिक सुधार आंदोलनों के महानायकों ने भी आगे बढ़कर हिंदी भाषा को अपनाने पर बल दिया। भारत की भाषाएं हिंदी के लिए चुनौती नहीं हैं। वह तो सहयोगी हैं। अधिकांश भाषाओं का उद्गम स्रोत संस्कृत होने के कारण इनका वाक्य गठन और शब्द भंडार एक दूसरे का विरोधी नहीं है। हिंदी समय-समय पर अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द लेकर स्वयं को नवीनीकृत करती रही है। यह सच है कि वैश्वीकरण के दौर में अंग्रेजी भाषा एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर रही है, लेकिन कोई भी विदेशी भाषा किसी किसी भी संस्कृति के मूलभूत तत्वों को पूर्णतया संजोने में असमर्थ है। भाषा किसी भी मानव सभ्यता की सर्वोच्च उपलब्धि है अतः इसके प्रति सम्मान भाव रखकर ही हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को सुरक्षित रख सकते हैं और खुद को भी।