उर्दू जुबां की लीला 'दास्तान-ए-राम' में स्थापित हुई श्रीराम की मर्यादा Prayagraj News
उर्दू-हिंदी के मिश्रित संवाद में दास्तान-ए-राम लीला का मंचन एनसीजेडसीसी में तमाम मुस्लिम कलाकारों ने किया। दर्शकों ने करतल ध्वनि से अभिवादन किया।
प्रयागराज, जेएनएन। मंचों पर रामलीला तो बहुत देखी होगी। कहीं रामचरित मानस की चौपाइयों पर तो कहीं राधेश्याम रामायण की तर्ज पर। तमिल में कंबन की रामायण में लीला कुछ अलग कथा समेटे मिलती है। वहीं एनसीजेडसीसी में सीता, लक्ष्मण सहित कई मुस्लिम कलाकारों के अभिनय से मंच पर उर्दू-हिंदी मिश्रित जुबान में जीवंत हुई 'दास्तान-ए-राम' अलग छाप छोड़ गई।
लीला में राम जन्म से रावण वध कर राम के अयोध्या आने तक का प्रसंग समाहित
लीला के स्क्रिप्ट राइटर प्रो. दानिश अकबाल की कथाकारों संग दास्तान गोई (स्टोरी टेलिंग) के साथ 'दास्तान-ए-राम' शुरू होती है। डेढ़ घंटे की लीला में राम जन्म से रावण वध कर राम के अयोध्या आने का प्रसंग समाहित है। इसमें कलाकार कहीं ङ्क्षहदी-उर्दू जुबान में डायलाग करते हैैं तो कहीं सूफी कलंदर और मलंग की संगीतमय रामकथा 'राम के काज हैैं जग से निराले, राम जानें रमङ्क्षह जानें' से लीला आगे बढ़ती है। राम वन गमन की पृष्ठभूमि मंच पर विराजमान स्क्रिप्ट राइटर प्रो. दानिश अकबाल और उनके कथाकारों की संवाद शैली में पूरी हुई। सूफी मलंग की संगीतमय प्रस्तुति के बीच कलाकार आते हैैं और भाव भंगिमा प्रदर्शित कर आगे बढ़ जाते हैैं। सूफी प्रस्तुति और कलाकार की भाव भंगिमा से दर्शक लीला भलीभांति समझते हैैं।
'राज सिंहासन पर बैठूं या पिता का वचन निभाऊं
राम वन गमन में राम का असमंजस सूफी मलंग की प्रस्तुति- 'राज सिंहासन पर बैठूं या पिता का वचन निभाऊं। मोड़ के आगे दो-दो पथ हैैं, मैं कौन से पथ पर जाऊं' से स्पष्ट होता है। कौशल्या से राम आज्ञा लेते हैैं तो वह कहती हैैं- 'अपने मुंह से न हरगिज कहूंगी हां, इस तरह वन में आंखों के तारे को भेज दूं, जोगी बना के राजदुलारे को भेज दूं, सजग हुए थे मुझसे खुदा जाने क्या होगा, मझधार में जो यूं मेरी कश्ती हुई तबाह।' वन की राह पर बढऩे पर सीता कहती हैैं- 'बातों के दिल के बाग को मोड़ा न जाएगा, साए से साथ धूप का छोड़ा न जाएगा। जाना है गर जरूर तो मैैं पहले जाऊंगी, जंगल में राम नाम से मंगल मनाऊंगी।' मारीच वध डिजिटल तकनीकि से पूर्ण हुआ।
रावण ने संगीतमय प्रस्तुति से सूपर्णखा की नाक काटने के बदले का एलान किया
एक गीत 'कैसी खबर ये आई है दशरथ गुजर गए, अयोध्या में कोहराम है दशरथ गुजर गए' से दशरथ मरण दर्शकों को समझ आता है। उधर सीता को लेकर रावण लंका पहुंचता है तो मंदोदरी ने विरोध किया लेकिन रावण ने संगीतमय प्रस्तुति के साथ सूपर्णखा की नाक काटने के बदले का एलान किया। लक्ष्मण का मूर्छित होना, हनुमान को संजीवनी लाने की लीला दास्तान गोई और तकनीक की प्रस्तुति से पूरी हुई। नाभि पर वाण लगने से रावण का गिरना और गिरते दशानन को राम द्वारा संभालने का मंचन अहसास कराता है कि राम ऐसे ही मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं कहे गए। लीला में भरत नाट्यम, कथक, छऊ नृत्य भी खूब है।
मुस्लिम कलाकारों ने जमाया रंग
बेन्हर्स फोरम फॉर टेक्निकल आर्ट्स (फाब्टा) की ओर से 'दास्तान-ए राम' की प्रस्तुति की गई। फाब्टा के डायरेक्टर तारिक खान हैैं। लीला में सीता की भूमिका कानपुर की साफना रहमान ने, राम की भूमिका नई दिल्ली के संदीप करतार सिंह ने, लक्ष्मण की भूमिका नई दिल्ली के मो. अदनान ने निभाई। कई और मुस्लिम कलाकारों ने भूमिका निभाई।