नाम और सिम बदलकर सात साल तक पुलिस को चकमा देता रहा डकैत Prayagraj News
एसटीएफ के एएसपी नीरज पांडेय और डिप्टी एसपी नवेंदु कुमार बताते हैं कि अनुराग ने बचने के लिए बेहद चालाकी बरती। इसी वजह से वह इतने साल तक फरारी काट सका।
प्रयागराज, जेएनएन । पुरानी कहावत है कि अपराधी कितना भी चालाक क्यों न हो, एक न एक दिन कानून के हाथ उस तक पहुंच ही जाते हैं। यह कहावत कालिंजर में सामूहिक हत्याकांड के कातिल अनुराग मिश्रा के मामले में भी सटीक बैठी है। 50 हजार के इनामी अनुराग ने 2012 में मानिकपुर रेलवे स्टेशन पर पुलिस हिरासत से फरार होने के बाद लगातार ठिकाने और सैकड़ों सिमकार्ड, मोबाइल फोन, हुलिया और नाम तक बदले लेकिन एसटीएफ के हत्थे चढ़ ही गया।
दसवीं फेल होने पर बन गया था डकैत
बांदा के कालिंजर इलाके के तरहटी गांव में 1983 में जन्मा अनुराग मिश्र उर्फ राजू बचपन से डाकुओं की गतिविधियों को देख सुन रहा था। दसवीं फेल होने पर वह अपने ही गांव के डाकू पप्पू यादव के गिरोह में शामिल हो गया था।
बारात से लौट रहे आठ लोगों की हत्या में था शामिल
2003 में गिरोह के साथ बरात से लौट रहे आठ लोगों की हत्या कर दी। पकड़ा गया, अदालत ने 2012 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। कोर्ट से जेल ले जाते वक्त वह मानिकपुर रेलवे स्टेशन पर हिरासत से भाग निकला। तब से वह फरार था। 50 हजार रुपये यूपी पुलिस और 15 हजार एमपी पुलिस ने इनाम भी घोषित किया था। आखिरकार सात साल बाद एसटीएफ प्रयागराज ने तीन दिन पहले उसे नैनी के अरैल में दबोच लिया।
तीन राज्य के कई जिलों में रहा ठिकाना
एसटीएफ के एएसपी नीरज पांडेय और डिप्टी एसपी नवेंदु कुमार बताते हैं कि अनुराग ने बचने के लिए बेहद चालाकी बरती। इसी वजह से वह इतने साल तक फरारी काट सका। इन दोनों अफसरों के मुताबिक, अनुराग ने पत्नी और दो बेटियों को महोबा में रखा लेकिन खुद कभी एक स्थान पर नहीं रहा। रिश्तेदारों को भी अपने टिकने की जगह के बारे में नहीं बताता था। उसने मध्य प्रदेश के सतना, रीवा, छतरपुर से उत्तराखंड के चम्पावत समेत कई जिलों में लगातार किराए के कमरे बदले। यहां तक कि पकड़े जाने का खतरा देख पांच दिन में भी कमरे बदल दिए।
फरारी के दौरान वसूलता रहा रंगदारी
फरारी के दौरान भी वह धमकी देकर रंगदारी वसूलता रहा। कभी पत्नी से मिलने जाता तो रात में घर की बजाय कहीं और ठहरता ताकि पकड़ा न जाए। सर्विलांस के जरिए पुलिस के जाल में फंसने के डर से सात साल में उसने पांच सौ से ज्यादा सिम और सौ से भी ज्यादा मोबाइल बदले। मोबाइल फोन वह सस्ता कामचलाऊ ही खरीदता। सिम फर्जी नाम पते पर खरीदता और दो-तीन बार ही पत्नी और करीबियों से बात करने के बाद बदल देता। जगह बदलने के साथ ही अपना वह नाम और हुलिया भी बदल लेता था। उसने राजू, अभय, सुरेश, दीपक जैसे कई नाम रखे। कभी दाढ़ी रख लेता तो कभी गंजा हो जाता। साधु भेष भी रखा। अबकी वह नैनी जेल में एक अपराधी से मिलने आया तो सटीक सूचना पर फंस गया।
पत्नी और पुत्रियों के भी बदले नाम
सीओ एसटीएफ नवेंदु कुमार के मुताबिक, पुलिस को चकमा देने के लिए अनुराग ने पत्नी और बेटियों के लिए मकान के साथ ही उनके नाम भी कई बार बदले। एक बार एसटीएफ उसके ठिकाने तक पहुंच गई थी लेकिन वह भाग निकला। कमरे में पुलिस को दर्जनों सिमकार्ड मिले थे।