कुंभ से गोरक्षा की जगाएंगे अलख, गोवंश करेंगे प्रदक्षिणा
कनक पंक्षी फाउंडेशन की ओर से कुंभ मेले में गोरक्षा की अलख जगाएगा। श्रद्धालुओं को इसका महत्व समझाया जाएगा।
कुंभनगर : गोवंश संरक्षण सरकार की प्राथमिकता में है और तमाम सामाजिक-धार्मिक संगठन इसके लिए आंदोलनरत भी हैं। मगर, कनक पंक्षी फाउंडेशन प्रयागराज कुंभ की भूमि से गो-संवर्धन की नई अलख जगाने जा रहा है। यह अपने आप में खास नजारा होगा कि गंगा और यमुना के तटीय गांवों से लाए गए गोवंश संगम की प्रदक्षिणा कर गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था भी समझाएंगे।
22 जनवरी से शुरू होगा आंदोलन
कुंभ धाॢमक-सामाजिक सरोकारों का संगम है। इसी विचार के साथ सामाजिक संस्था कनक पंक्षी फाउंडेशन ने इस पावन भूमि से गाय का सामाजिक और आर्थिक महत्व का निर्णय लिया है। संस्था के संस्थापक ज्ञानेश कमल ने बताया कि 22 जनवरी से हमारा आंदोलन शुरू होगा, जो माघ माह तक चलेगा। यहां गंगा और यमुना किनारे बसे गांवों के ग्रामीणों से बात की गई है। वह अपने गोवंश लेकर प्रयागराज आएंगे। इसके बाद इन गोवंशों के साथ संगम की परिक्रमा की जाएगी। यहां दुनिया-देश से आए श्रद्धालुओं को समझाया जाएगा कि गाय और गोवंश हमारे लिए किन-किन मायनों में अहमियत रखते हैं। कुंभ की व्यवस्थाएं प्रभावित न हो, इसलिए तय किया गया है कि गोवंश को लेकर कुंभ क्षेत्र के भीतर नहीं जाएंगे।
यह है गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था का गणित
संस्था संस्थापक के मुताबिक, बीते लगभग 40 वर्षों में यांत्रिक खेती का प्रचलन बढ़ा है, इसलिए गोवंश निष्प्रयोज्य हो गए। यह बताते हैं कि राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के आंकड़े हैं कि प्रति 10 किलोमीटर के व्यास में छह हजार गोवंश निर्वासित हैं। इस दायरे में वह 60 हजार किलो गोबर और 30 हजार लीटर मूत्र विसर्जित करते हैं। विशेषज्ञों का आकलन है कि 60 हजार किलो गोबर से निकलने वाली मीथेन गैस से 550 सिलेंडर भर सकते हैं। 30 हजार किलो कंपोस्ट और इतना ही वर्मी कंपोस्ट उपलब्ध हो सकता है। पर्यावरण भी मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन गैस उत्सर्जन से होने वाले नुकसान से बच सकेगा।