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ऑडियो वायरल होेने पर फंसे प्रयागराज के पूर्व थानेदार, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू

वह 2017 में प्रयागराज में घूरपुर थानाध्यक्ष के पद पर तैनात थे। इसी दौरान तत्कालीन एसएसपी के स्टेनो से बातचीत का ऑडियो वायरल हुआ था। उसमें थाने में तैनाती को लेकर लेनदेन की बात शामिल थी। ऑडियो के आधार पर तत्कालीन आइजी रमित शर्मा ने जांच कराकर निलंबित किया था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 04 Oct 2020 09:36 PM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2020 07:20 AM (IST)
ऑडियो वायरल होेने पर फंसे प्रयागराज के पूर्व थानेदार, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू
आय से अधिक संपत्ति के मामले में अरविंद त्रिवेदी पर लगे आरोप सही पाए गए।

प्रयागराज, जेएनएन। घूरपुर थाने के पूर्व थानाध्यक्ष अरविंद कुमार त्रिवेदी के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच शुरू हो गई है। आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच में आरोप सही पाए जाने पर भ्रष्टाचार निवारण संगठन कानपुर के इंस्पेक्टर बीएस दोहरे ने घूरपुर थाने में मुकदमा दर्ज कराया है।

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ऑडियो वायरल होने पर बैठी थी जांच

अरविंद त्रिवेदी रायबरेली जिले के लालगंज थाना क्षेत्र स्थित गोविंदपुर बलौली गांव के रहने वाले हैं। वह 2017 में घूरपुर थानाध्यक्ष के पद पर तैनात थे। इसी दौरान तत्कालीन एसएसपी के स्टेनो से बातचीत का ऑडियो वायरल हुआ था। उसमें थाने में तैनाती को लेकर लेनदेन की बात शामिल थी। ऑडियो के आधार पर तत्कालीन आइजी रमित शर्मा ने मामले की जांच कराई। प्रथम द्रष्टया दोषी पाए जाने पर निलंबन की कार्रवाई हुई थी। इसके बाद विजिलेंस और फिर भ्रष्टाचार निवारण संगठन की ओर से जांच शुरू की गई।

बांदा में किया गया लाइनहाजिर

अधिकारियों का कहना है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में अरविंद त्रिवेदी पर लगे आरोप सही पाए गए। मामले की विवेचना भ्रष्टाचार निवारण संगठन के विवेचक कर रहे हैं। उधर, प्रयागराज एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर बांदा एसपी ने अरविंद को तत्काल प्रभाव से लाइन हाजिर कर दिया है।

नहीं बता सके सफारी, प्लॉट के लिए कहां से आया पैसा

भ्रष्टाचार निवारण संगठन की ओर से अरविंद त्रिवेदी के वर्ष 2006 से 2017 के दौरान आय और व्यय की छानबीन की गई। तब पता चला कि उन्होंने रायबरेली में अपनी पत्नी के नाम पर जमीन खरीदकर उस पर निर्माण करवाया। सफारी कार, बाइक और आभूषण भी खरीदे। तीन अलग-अलग बैंक में खाते थे, जिसमें लाखों रुपये थे। कुछ खातों में हर माह वेतन के अलावा 10 हजार रुपये से अधिक की रकम जमा होती थी। अधिकारियों का कहना है कि अतिरिक्त आय के स्रोत के बारे में वह नहीं बता सके और न ही कोई प्रमाण दे सके। इसके आधार पर उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया है।


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