Coronavirus संक्रमित मरीज जीवन-मौत के बीच हैं, दवाओं की कालाबाजारी में पुलिस की हीलाहवाली भी
कोरोना संक्रमित व्यक्ति के लिए इलाज में कारगर हो रही दवाएं और इंजेक्शन आसानी से नहीं मिल रहे हैं और अगर उपलब्ध भी हैं तो उसके लिए तीमारदार को मुंहमांगी कीमत अदा करना पड़ रहा है। पुलिस और प्रशासन की हीलाहवाली को लोग जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे मरीज की जान बचाने के लिए तीमारदार अब न केवल स्वास्थ्य विभाग को कोस रहे हैं, बल्कि पुलिस और प्रशासन पर भी सवाल उठा रहे हैं। निर्धारित मूल्य से कई गुना दाम देकर जहां लोगों को दवा और इंजेेक्शन मिल रहे हैं, वहीं इस मुनाफे से कालाबाजारी करने वालों की चांदी हो रही है।
मरीजों के तीमारदारों को मुंहमांगी कीमत देनी पड़ती है
कोरोना संक्रमित व्यक्ति के लिए इलाज में कारगर हो रही दवाएं और इंजेक्शन आसानी से नहीं मिल रहे हैं और अगर उपलब्ध भी हैं तो उसके लिए तीमारदार को मुंहमांगी कीमत अदा करना पड़ रहा है। ऐसी ही परेशानी से जूझ रहे शख्स इसके लिए पुलिस और प्रशासन की हीलाहवाली को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी
कुछ दवाओं के साथ ही रेमडेसिविर इंजेक्शन भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के इलाज में काफी सहायक होने की बात कही जा रही है। संक्रमित लोगों की संख्या में एकाएक वृद्धि ने इस इंजेक्शन की सप्लाई से जुड़े कतिपय लोगों, थोक और फुटकर विक्रेताओं को अवैध कमाई का अवसर पैदा कर दिया। कहा जा रहा है कि दुकानों पर इंजेक्शन न होने की बात कहकर तीमारदारों को वापस कर दिया जाता है या फिर उनसे मुंहमांगी कीमत मांगी जाती है।
पुलिस अफसर अनजान बने
इतना ही नहीं, इंजेक्शन पाने के लिए मरीज के स्वजनों को इधर-उधर भटकना भी पड़ता है। फिर किसी तरह जुगाड़ के जरिए 15 से 20 हजार रुपये में एक इंजेक्शन मिल जाता है, जबकि मरीज को कई इंजेक्शन की आवश्यक पड़ती है। हैरान करने वाले तथ्य यह भी कि कुछ पुलिसकर्मियों को भी रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने के लिए निर्धारित मूल्य से अधिक कीमत चुकानी पड़ी। यह हाल तब है जब जिले में एक नहीं बल्कि एसओजी की पांच टीम व एसटीएफ है। इसके बावजूद पुलिस अफसर अनजान बने हुए हैं।