Coronavirus Effect : अभिवादन से ज्यादा 'कोरोना नमस्ते' सुरक्षा चक्र का रूप ले चुका है Prayagraj News
कवि एवं साहित्यकार डॉक्टर श्लेष गौतम ने कहा कि सच में बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। जो काम सरकारें बड़े-बड़े विचारक नहीं कर सकीं वह काम कोरोना वायरस ने कर दिखाया है।
प्रयागराज, जेएनएन। जी हां...इन दिनों वैश्विक महामारी और भारतीय अभिवादन की परंपरा एक साथ दिखाई दे रही है। कभी दूर से ही नमस्ते कर देने का अर्थ होता था पीछा छुड़ाना या असम्मान प्रकट करना। वहीं आज यही अभिवादन की सबसे श्रेष्ठ शालीन और सबसे सुरक्षित प्रक्रिया मानी जा रही है। बड़े-बड़े गुरु भी अब अपना पैर छूआने से डर रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो चेला पैर छूए और हमीं को छुआ के चल दे। आज कोरोना नमस्ते अभिवादन से ज्यादा सुरक्षा चक्र का रूप ले चुका है। कोरोना नमस्ते का अर्थ ही हो गया है कृपया उचित दूरी बनाए रखें। यह मानना है शहर के चर्चित कवि एवं साहित्यकार श्लेष गौतम का। उनका विचार, उनकी सोच हम आप के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
जो काम कोई नहीं कर सका, वह कोरोना ने कर दिखाया
सच में बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है। वह ये कि जो काम सरकारें नहीं कर सकी, जो काम स्कूल-कॉलेज नहीं कर सके, जो काम बड़े-बड़े विचारक, स्वयंसेवी संस्थाएं नहीं कर सकीं वह काम कोरोना ने कर दिया। तुलसी बाबा याद आते हैं 'भय बिन होय न प्रीति' और इस महामारी ने सबको कितना संस्कारित कर दिया है और कितना सचेत कर दिया है यह देखने योग्य बात है। कहां तो अंगुली क्या पूरा हाथ डूबा-डूबा कर खाने वाले खाकर भी कायदे से हाथ नहीं धोते थे और खाने से पहले हाथ धोने की परंपरा तो डायनासोर की तरह पहले ही लुप्त हो चुकी थी।'हेल्थ -हाइजीन' वाला कांसेप्ट ही जैसे न रहा हो। अरे भाई प्रधानमंत्री जी को भी बार-बार कहना पड़ रहा था कि 'खाने से पहले और बाद में हाथ धोएं और इस तरह से हाथ धोएं'।
पोंछ लेने की प्रथा भी अब समाप्ति की ओर है
जहां राष्ट्रीय विमर्श में और चिंतन में सामान्य साफ-सफाई और सुरक्षा एक मुद्दे की तरह हो, वहां पर आसानी से समझा जा सकता है कि 'कोरोना' का क्या असर होगा। आज हालात यह है दिन भर में 20 बार हाथ धोया जा रहा है। गाड़ी बाइक से चलने वाला अपनी जेब में सैनिटाइजर रखे चल रहा है मास्क भी पहन रहा है।एक दूसरे को सलाह दी जा रही है और खुद अमल किया जा रहा है छींक और खांसी आने के बाद पूरा माल मटेरियल इधर-उधर पोंछ लेने की प्रथा भी अब समाप्ति की ओर है।
एक ओर सैनिटाइजर है तो दूसरी ओर बेफिक्री नजर आ रही है
अपने प्रयागराज में तो अद्भुत ही स्थिति है। यहां पर एक और जहां कोरोना को लेकर तमाम लोग बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं। कहीं मास्क तो कहीं सैनिटाइजर की बात है तो वहीं एक दूसरा वर्ग भी है जो कोरोना को लेकर एकदम बेफिक्रे और हंसी में उड़ा करके चल रहा है। एक विशेषज्ञ और दार्शनिक की तरह या भी कह रहा है कोरोना फोरोना कुछ नहीं जो होना होगा होगा। जहां कुछ दिन पहले तक विदेश से आए दोस्तों के साथ सेल्फी खिंचा कर फेसबुक और व्हाट्सएप पर स्टेटस अपलोड किया जा रहा था, वहीं अब उस पोस्ट को डिलीट करके सन्नाटे का सेवन किया जा रहा है। घर दफ्तर बाहर बसों में चढ़ने के दौरान रेलिंग का इस्तेमाल भूल कर के भी नहीं किया जा रहा है क्योंकि सभी वाकिफ है पुराने इलाहाबादी शब्द से 'रेला जाने का डर'।
बकैती-बहसबाजी के तमाम नुक्कड़,अड्डे बहुत हद तक सूने हो चले हैं
खांसना-छींखना तो जैसे राष्ट्रीय जुर्म हो गया है। सामान्य खांसी और सामान्य छींक भी लोगों को ऐसे ही दूर कर दे रही है कि क्या कहा जाए। शहर मैं बकैती-बहसबाजी के तमाम नुक्कड़,अड्डे बहुत हद तक सूने हो चले हैं,जहां मोहल्ले के मामा से लेकर के ओबामा तक मोदी से लेकर के ट्रंप तक की बहस हुआ करती थी। कोरोना वायरस ने निश्चित रूप से शहर में एक हॉट चिंता और खालीपन खालीपन कि एक अस्थाई रेहड़ी गुमटी तो लगा ही दी है। अब जो भी बकैती हो रही है वह हो तो मुंह से ही रही है लेकिन मुंह पर भी मास्क लगाकर के हो रही है क्योंकि इलाहाबाद @प्रयागराज की बात हो और बकैती न हो ऐसा, ऐसा हो ही नहीं सकता। भाई हमारे प्रयागराज में श्री बजरंगबली विराजते हैं। हनुमान चालीसा किसी को याद हो तो याद करें, बड़ा तगड़ा तोड़ दिया है हारी-बीमारी का,'नासे रोग हरे सब पीरा, जो सुमिरे हनुमत बलबीरा'।
सैनिटाइज़र से ज़्यादा कवि सम्मेलनों से उनको हाथ धोना पड़ा है
लोगों का कहना कि ई करोना के तोड़ है। एक चाचा बोले 'हियां बड़े बड़े आए के लेट गए कोरोना के का औकात है आतै निपुर जाई। साहित्यिक नगरी है अपना शहर हमेशा कविताओं से गुलज़ार रहने वाला फिलहाल तो सैनिटाइज़र से ज़्यादा कवि सम्मेलनों से उनको हाथ धोना पड़ा है। होली के आसपास आगे पीछे मान सम्मान के साथ-साथ मोटे लिफाफे के आदि कवियों को कोरोना की वजह से आयोजनों में ना सुनना पड़ रहा है। बहुएं इसका एक सकारात्मक पक्ष भी देख रहीं हैं कि कॉलोनी मोहल्ले में सास मां और औरतों की पंचायत लगभग खत्म हो गई है। आजकल ताना मारने की जगह एक बार खांस देने से ही काम चल जा रहा है और नवविवाहित जोड़ों में भी पत्नी को एक खांसी मल्लिका से ताड़का बना दे रही है और एक खासी पतिदेव को दानव बना दे रही हैं।
कब पुलिस आ धमके और उठाकर के ले जाए
अपने प्रयागराज में तो तमाम सलोथर, खोचड़ चिंतक यह भी कह रहे हैं की कोरोना नमस्ते को भारत या एशियाई देशों में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में अभिवादन और सम्मान की अनिवार्य प्रक्रिया घोषित कर देनी चाहिए इसकी वैज्ञानिक व्यावहारिक स्वीकार्यता और उपादेयता को देखकर। कामकाजी लोगों की तो मत पूछिए पहले जहां एक-दो दिन के लिए छुट्टी लेना होता था तो सबसे बढ़िया बहाना होता था। फोन कर फोन करके एक सधे हुए रंगमंच के अभिनेता-अभिनेत्री की तरह व्यक्ति तीन बार खांस कर के और आवाज दबा करके बोलता था, सर्दी ज़ुकाम हो गया है थोड़ा बुखार हो गया है। अब अगर होगा तो भी अगला नहीं बोल रहा है क्योंकि पता नहीं अगले को यह सूचना देने के बाद कब पुलिस आ धमके और उठाकर के ले जाए कि बीमारी छुपा रहे हो।
घर में भी लोग एक दूसरे से दूर-दूर हो रहे हैं
बहरहाल करोना ने एक नए सामाजिक विमर्श को जन्म दिया है, पहले जहां संकट की घड़ी में लोग एक हो जाते थे इसमें एक-दूसरे से दूर रहने की हिदायत दी जा रही है। कोरोना के संकट का यह वैज्ञानिक व्यावहारिक पक्ष है, इसलिए आवश्यक भी है। घर में भी लोग एक दूसरे से दूर-दूर हो रहे हैं। कभी-कभी तो दूरी देख कर ऐसा लगता है कि जैसे चकबंदी में इतने दूसरे का टुकड़ा काटकर के बढ़ा लिया गया हो। चलते-चलते यह भी कि कोरोना नमस्ते ने जहां 'दूरै से प्रणाम करो' वाली स्थिति ला दी है। वहीं करोना नमस्कार करने के बाद मास्क मांस का क्या कारण नमस्कार ग्रहण करने वाला भी अजीब चिंता में रहता कि कौन हमें नमस्कार करके आगे निकल लिया। सच कहूं तो उपरोक्त बातें सच के साथ-साथ थोड़ा व्यंग्य विनोद का भी संदर्भ लिए थी, पर मुझे पूरा भरोसा है कि हम अपनी संचेतना से सजगता से और सुरक्षा के मानकों का अनुपालन करते हुए इस महामारी से निजात पा लेंगे ऐसी अपेक्षा है। ईश्वर हम सबकी रक्षा करें।।