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त्याग के मेले में सुविधा को तकरार

त्याग-तपस्या का पर्याय है माघ मेला। मेले में जमीन व सुविधा को लेकर संतों में तकरार बढ़ गई है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Nov 2021 12:34 AM (IST)Updated: Tue, 30 Nov 2021 12:34 AM (IST)
त्याग के मेले में सुविधा को तकरार
त्याग के मेले में सुविधा को तकरार

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : त्याग-तपस्या का पर्याय है माघ मेला। समस्त सुख-सुविधाओं से मुक्त होकर संत-श्रद्धालु संगम तीरे कल्पवास करने आते हैं। मंशा होती है जप-तप के जरिए परमात्मा की कृपा प्राप्त करना। जनवरी बीतने के बाद तंबुओं की नगरी आबाद होगी, लेकिन त्याग के मेला में सुविधा को लेकर अभी से तकरार शुरू है। आश्चर्यजनक है कि विवाद करने वाले वो संत हैं जो त्याग की शिक्षा देते हैं। रेती पर वैभवपूर्ण शिविर लगाने के लिए संतों में वर्चस्व की जंग छिड़ी है, गत वर्ष भी माघ मेला में जमीन को लेकर संतों में रार छिड़ी थी। इसकी शुरुआत आचार्य नगर (आचार्यबाड़ा) से हुई है। अखिल भारतीय श्रीरामानुज वैष्णव समिति आचार्यबाड़ा ने प्रशासन से जमीन व सुविधा वितरित करने की मांग की है।

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वहीं, श्रीरामानुजनगर प्रबंध समिति आचार्यबाड़ा ने परंपरा के अनुसार समिति के जरिए जमीन वितरित करने पर जोर दिया है। इसके साथ प्रशासन से आचार्य नगर से फर्जी संस्थाओं को बाहर करने की मांग की है। विवाद सिर्फ आचार्य नगर तक सीमित नहीं है। खाकचौक में भी तकरार तेज हो रही है। हर बार खाकचौक व्यवस्था समिति के जरिए महात्माओं को जमीन वितरित होती थी। जनवरी 2021 में समिति के अध्यक्ष महामंडलेश्वर सीताराम दास व महामंत्री महामंडलेश्वर संतोष दास 'सतुआ बाबा' के बीच विवाद हो गया। दोनों ने अलग-अलग समिति बना लिया है। सीताराम दास का कहना है कि जमीन उनके नेतृत्व में बांटी जाएगी। संतोष दास का कोई दखल स्वीकार नहीं किया जाएगा। वहीं, संतोष दास का कहना है कि सीताराम दास को समिति से बाहर कर दिया गया है। अब समिति के अध्यक्ष महामंडलेश्वर दामोदर दास हैं। उन्हीं के नेतृत्व में जमीन वितरित होगी। दंडी संन्यासी भी दो खेमे में बंट गए हैं। अखिल भारतीय दंडी संन्यासी प्रबंधन समिति के अध्यक्ष स्वामी विमलदेव आश्रम का कहना है कि उनके नेतृत्व में जमीन वितरित होती है। इस बार भी ऐसा ही होगा। वहीं, अखिल भारतीय दंडी संन्यासी परिषद के अध्यक्ष स्वामी ब्रह्माश्रम ने उनका विरोध करते हुए कहा कि जमीन वितरण में किसी संगठन की मनमानी नहीं चलेगी। दोनों संगठन में सामंजस्य स्थापित करके जमीन वितरित कराई जाएगी। इसी प्रकार तीर्थपुरोहितों में आधा दर्जन से अधिक गुट बन गए हैं। सभी अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार जमीन आवंटित कराने का दबाव बना रहे हैं।


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