प्रयागराज में प्रकृति की अलौकिक कृति देखना है तो आइए सुजावन देव मंदिर
इतिहासकार डॉ.दिनेश ओझा बताते हैं कि गदर के पश्चात यमुना की एक शाखा जब ईस्ट इंडियन रेलवे के उस पार निकली तो उससे जुड़े ठेकेदारों ने ईंटों की खोज में इस स्थान को खोजा। ईंटों को निकालने में यहां प्राचीन नगर की सभ्यता दिखी।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में यमुना के बीच प्रकृति की एक अनोखी कृति है। घुरपुर से तीन किमी पश्चिम में यमुना नदी के तट पर स्थित सुजावन देव मंदिर की लोकेशन मन को बहुत लुभाती है। यहां भगवान भोले बाबा और यमुना का एक मंदिर है। इस मंदिर में वर्ष भर लोगों का आना जाना रहता है। कार्तिक माह में यम द्वितीया पर यहां मेला लगता है। इस मेले में आस पास के अलावा मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों के लोग भी दर्शन पूजन को आते हैं। यमुना के बीच होने के कारण खनन माफिया भी यहां नजर गड़ाए रहते हैं। बालू की अवैध खुदाई होने के कारण समय के साथ मंदिर का स्वरूप भी बदलता जा रहा है।
मंदिर के आस पास थी नगरीय सभ्यता
भीटा स्थित सुजावन देव मंदिर की उत्पत्ति की घटना काफी दिलचस्प है। जिस जगह यह मंदिर है इसके बारे में काफी दिनों तक लोगों की जानकारी ही नहीं थी। इतिहासकार डॉ.दिनेश ओझा बताते हैं कि गदर के पश्चात यमुना की एक शाखा जब ईस्ट इंडियन रेलवे के उस पार निकली तो उससे जुड़े ठेकेदारों ने ईंटों की खोज में इस स्थान को खोजा। ईंटों को निकालने में यहां प्राचीन नगर की सभ्यता दिखी। इस नगर के चिह्न उत्तर की ओर सुजानदेव के मंदिर से आरंभ होकर दक्षिण में डेढ़ मील तक फैले हुए थे। मंदिर यमुना के बीच था। संभवत: पहले यह मंदिर नगर से मिला हुआ रहा होगा। समय के साथ नदी के प्रवाह बीच की भूमि कट कर बह गई। इसकी वजह से मंदिर बस्ती से अलग होकर टापू के रूप में यमुना के बीच में आ गया। मंदिर धरातल से करीब 60 फुट ऊपर है।
1645 में शाइस्ता खां ने ध्वस्त कर दिया था मंदिर
डॉ. ओझा बताते हैं कि शाहजहां के समय में शाइस्ता खां इलाहाबाद यानी प्रयागराज का सूबेदार था। उसने सन 1645 में पुराने मंदिर को विध्वंस करके उस स्थान पर एक अठपहल बैठक बनवा दी। यह बैठक 21 फुट व्यास की थी। बैठक में फारसी के पांच पद्यों में उसने अपना नाम तथा उसके निर्माण का हिजरी संवत अंकित कराया। शाइस्ता ने लिखवाया कि उसकी आज्ञा से यह विचित्र, सुंदर तथा अत्यंत ऊंचा भवन सन 1055 (1645 ईं) में मोहम्मद शरीफ के प्रबंध से बनकर तैयार हुआ। डॉ. ओझा बताते हैं कि बाद में इस स्थान पर हिन्दुओं ने फिर अधिकार कर लिया। एक मूर्ति उसमें स्थापित कर दी।
पर्यटन विभाग के नक्शे पर अंकित हैं मंदिर
सुजावन देव मंदिर पर्यटन विभाग के नक्शे पर अंकित है। कभी यह मंदिर यमुना के बीच में था। अवैध खनन के कारण इसके अगल बगल यमुना नदी का पानी कम हो गया है। इसकी वजह से मंदिर का अस्तिव खतरे पड़ता जा रहा है। मंदिर की नींव में लगे पत्थर कमजोर हो रहे हैं। मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग से संरक्षित है। इसके बावजूद इसकी देखरेख में कोताही बरती जा रही है। हालांकि बारिश में लोग नाव से मंदिर में पहुंच पाते हैं।
ओमकारा समेत कई फिल्मों की हो चुकी शूटिंग
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस जगह पर ओमकार समेत कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। अजय देवगन समेत कई नामचीन फिल्मी सितारे यहां आ चुके हैं। आए दिन यहां शुटिंग करने के लिए लोग पहुंचते हैं। शहरी भी दर्शन पूजन के साथ पिकनिक मनाने यहां आते हैं। मंदिर के नीचे उत्तर की ओर पांडवों की मूर्तियां भी बनी हुई हैं।
यमराज ने अपनी बहन यमुना का हाथ पकड़कर लगाई थी डुबकी
पंडित रामचंद्र शुक्ला बताते हैं कि सुजावन देव मंदिर के बारे में यह किवंदती है कि यहां यम द्वितीया पर यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए थे। उस समय उन्होंने बहन का हाथ पकड़कर यमुना में डुबकी लगाई थी। उस समय अपने आतिथ्य सत्कार से खुश होकर यमराज ने यमुना से वरदान मंगाने के लिए कहा था। यमुना ने वर मांगा कि भैया दूज के दिन जो भक्त यमुना स्नान करेंगे उन्हें मृत्यु का भय न रहे और देव लोक में स्थान मिले। यमराज ने कहा कि ऐसा ही होगा। इसी वजह से सुजावन देव मंदिर और यमुना तट पर मेला लगता है। लोग स्नान करके दीपदान करते हैं।