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दो प्रधानमंत्री प्रयागराज शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे, अब इस दफ्तर की ऐतिहासिकता खतरे में

अब के प्रयागराज तब इलाहाबाद शहर कांग्रेस कमेटी की पहली अध्यक्ष कमला नेहरू रहीं थीं। जवाहर लाल नेहरू पुरुषोत्तम दास टंडन विशंभर नाथ पांडेय मुजफ्फर हसन इंदिरा गांधी इस कमेटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इन नेताओं की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तब रोजाना बैठक होती थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 07:52 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 07:52 AM (IST)
दो प्रधानमंत्री प्रयागराज शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे, अब इस दफ्तर की ऐतिहासिकता खतरे में
इलाहाबाद शहर कांग्रेस कमेटी के कार्यालय इन दिनों बदहाली का शिकार है।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के व्यस्ततम इलाके चौक में आजादी के पहले सन 1932 से शहर कांग्रेस कमेटी का दफ्तर स्थापित है। देश के तीन प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री एवं इंदिरा गांधी ने इस कार्यालय में महत्वपूर्ण बैठकों में भाग लिया। आजादी के पहले इस कार्यालय में कई अहम निर्णय लिए गए। पुराने कांग्रेसियों का कहना है कि फिरोज गांधी की इंदिरा गांधी से मुलाकात भी इसी दफ्तर में पहली बार हुई। यहीं से उनके प्रेम प्रसंगों के किस्से दुनिया भर चर्चित हुए। देश के दो प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी के शहर कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष होने के बावजूद आज यह दफ्तर बदहाली का शिकार है। अब इसकी ऐतिहासिकता की अनदेखी भी हो रही है। कार्यालय का किराया तक कोर्ट में जमा हो रहा है।  

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कमला नेहरू थीं पहली अध्यक्ष

अब के प्रयागराज तब इलाहाबाद शहर कांग्रेस कमेटी की पहली अध्यक्ष कमला नेहरू रहीं थीं। जवाहर लाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास टंडन, विशंभर नाथ पांडेय, मुजफ्फर हसन, इंदिरा गांधी इस कमेटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इन नेताओं की अध्यक्षता में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तब रोजाना बैठक होती थी। अहम फैसले लिए जाया करते थे। शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे अभय अवस्थी बताते हैं कि देश के नामी गिरामी राजनेता इस कार्यालय में आ चुके हैं। अभी भी कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक और निर्णय यहां लिए जाते हैं। पर किसी ने इस कार्यालय के बदहाली पर ध्यान नहीं दिया। किसी ने इस कार्यालय को संजोने का प्रयास भी नहीं किया।

आजादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र था

अभय अवस्थी बताते हैं कि प्रयागराज आजादी के आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। इस कार्यालय में होने वाली बैठकों पर अंग्रेजों की भी नजर रहती थी। 1932 में जब यहां कार्यालय बनाया गया तब यह भारत में किसी राजनीतिक पार्टी का सबसे पहला दफ्तर था। आजादी के समय चौक का इलाका बहुत महत्वपूर्ण था। इसीलिए यह कार्यालय यहां बनाया गया था। बाद में शहर कांग्रेस कमेटी के पास ही सोशलिस्ट पार्टी का दफ्तर बना। उसके बाद यहीं पर कम्यूनिस्ट पार्टी का कार्यालय खुला। इन सभी दफ्तरों का हाल एक ही जैसा है।

1932 के  पहले स्वराज भवन में होती थी बैठक

पुराने कांग्रेसी नेता उमाकांत त्रिपाठी बताते हैं कि 1932 के पहले स्वराज भवन में कांग्रेस की बैठक होती थी। 1905 मोतीलाल नेहरू ने स्वराज भवन को दान में दिया था। हालांकि तब यह ट्रस्ट की ही संपत्ति थी। इसका मतलब था कि मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस की बैठक के लिए इस स्थान को दिया था पर कांग्रेस पार्टी का पहला दफ्तर चौक में ही बना था।  

दो कमरों में है दफ्तर

चौक इलाके में 34, जवाहर स्क्वॉयर के पहले तल पर दो कमरों में शहर कांग्रेस कमेटी का कार्यालय है। पहले तल पर जाने के लिए काफी पतली सीढिय़ां हैं। पहले हॉल में नीचे यानी जमीन पर ही बैठने की व्यवस्था है। जमीन पर ही गद्दा एवं मसलन लगा हुआ है। उसके ऊपर सफेद चादर और दो चौकियां लगी हैं। दीवार पर नेताओं की तस्वीर और पुराने पदाधिकारियों की सूची लगी है। कार्यालय में बैठे नेता प्रदीप नारायण द्विवेदी ने कहा कि यहां अब भी बड़े नेताओं का आना जाना रहता है। फिर भी इसकी ऐतिहासिकता को किसी की चिंता नहीं है। वैसे भी समय के साथ पार्टी को अन्य पार्टियों की तरह सिविल लाइंस में अपना कार्यालय बनाना चाहिए। क्योंकि यहां वाहन आदि को लेकर आने में दिक्कत होती है।

दुनिया भर में चर्चित रहा प्रेम-प्रसंग

पुराने कांग्रेसियों का कहना है कि फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी की मुलाकात शहर कांग्रेस कमेटी के बैठकों में होती थी। यहीं से उनके प्रेम प्रसंग की चर्चा आम हुई। अभय अवस्थी बताते हैं कि उनके बुर्जुगों ने सुन रखा था कि इंदिरा और फिरोज की यहीं मुलाकात हुई थी। 1942 के आजादी आंदोलन में यह दफ्तर क्रांतिकारी और राजनीतिक हलचल का केंद्र था। उस समय फिरोज गांधी एक युवा नेता के रूप में उभरे थे।

लाल किले से पहले फहराया था यहां तिरंगा

अभय अवस्थी बताते हैंं इसी दफ्तर के आहवान पर आजादी का तिरंगा झंडा 1942 में लाल किले से पहले ही जीरो रोड के स्वरूप रानी अस्पताल में फहरा दिया गया था। हुआ यह था कि इंडीपेंडेस एक्ट मंजूर हो गया था और अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध  के बाद इसे लागू करने की घोषणा कर दी थी। ऐसे में इलाहाबाद में सबसे पहले आजादी का झंडा फहरा दिया गया था।


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