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एक कमरे में बैठ रहे तीन कक्षाओं के बच्चे, यह है प्रयागराज के गोहरी कंपोजिट स्कूल का हाल

प्रधानाध्यापक धर्मेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि बच्चों के बैठने के लिए कक्ष न होने की जानकारी विभाग के अफसरों को है। विद्यालय परिसर में स्थान नहीं होने से नए कक्ष का निर्माण नहीं हो पा रहा है। जो संसाधन उपलब्ध हैं उनके अनुसार कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 12:15 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 12:15 PM (IST)
एक कमरे में बैठ रहे तीन कक्षाओं के बच्चे, यह है प्रयागराज के गोहरी कंपोजिट स्कूल का हाल
इनके बैठने के लिए अलग कक्ष न होने से एक कक्ष में तीन कक्षाएं साथ चलानी पड़ रहीं

पहले तो जानिए गोहरी कंपोजिट विद्यालय का हाल

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प्राथमिक स्तर पर पंजीकृत हैं 235 विद्यार्थी

उच्च प्राथमिक कक्षाओं में हैं 160 विद्यार्थी

प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए पांच शिक्षक

उच्च प्राथमिक के लिए तैनात हैं तीन शिक्षक, दो अनुदेशक

प्रयागराज, जेएनएन। कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए। कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए...। कवि दुष्यंत की यह पंक्तियां बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों पर सटीक बैठती हैं। सरकारी दावे हैं कि स्कूलों को माडल बनाया जाएगा। वे कान्वेंट की तर्ज पर विकसित होंगे। बच्चों को पढ़ने के लिए स्मार्ट क्लास मिलेगी। प्रार्थना लाउडस्पीकर व ड्रम से कराई जाएगी। वास्तविकता के धरातल पर उतरें तो बच्चों को बैठने के लिए कक्ष नहीं मिल रहे हैं। बानगी देखनी हो तो सोरांव विकासखंड के गोहरी कंपोजिट विद्यालय पहुंच जाइए।

अलग कमरे नहींं होने से एक कक्ष में तीन कक्षाएं साथ चलानी पड़ रही

तीन साल पहले तक यहां प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय अलग अलग चलते थे। अब दोनों विद्यालय मिलाकर कंपाेजिट बना दिए गए हैं। वर्तमान में यहां कुल पांच कक्ष हैं। 395 विद्यार्थी पंजीकृत हैं। कक्षा पांच में 54, कक्षा छह में 70, कक्षा सात में 53 और कक्षा आठ में 37 विद्यार्थी हैं। इनके बैठने के लिए अलग अलग कक्ष न होने से एक कक्ष में तीन कक्षाएं साथ चलानी पड़ रही हैं। इसके अतिरिक्त कुछ कक्षाएं खुले में चलती हैं तो बच्चों को कई बार धूप में भी बैठना पड़ता है। यहां न तो पुस्तकालय की व्यवस्था है न खेल के सामान रखने के लिए कोई कक्ष। शौचालय है पर उसकी सफाई के लिए कोई प्रबंध नहीं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक समय समय पर अपने खर्च से उसकी सफाई की व्यवस्था करते हैं। संभव है कायाकल्प के तय मानक यहां कागजों पर संतृप्त हो रहे हों लेकिन वास्तविकता कुछ और है।

कक्ष बनाने के लिए जमीन ही नहीं

इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक धर्मेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि बच्चों के बैठने के लिए कक्ष न होने की जानकारी विभाग के अफसरों को है। विद्यालय परिसर में स्थान नहीं होने से नए कक्ष का निर्माण नहीं हो पा रहा है। जो संसाधन उपलब्ध हैं उनके अनुसार कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।

35 से अधिक स्कूलों के पास कक्ष नहीं

बीएसए प्रवीण कुमार तिवारी ने बताया जनपद में अब तक 35 से अधिक स्कूलों के प्रधानाध्यापकों ने सूचना दी है कि उनके पास पर्याप्त कक्ष नहीं हैं। स्थिति से निपटने के लिए सभी स्कूलों में यू डायस डेटा भरवाया जा रहा है। इसके तहत स्कूल बच्चों, शिक्षकों और संसाधनों की जानकारी देंगे। उनके आधार पर परियोजना निदेशक कार्यालय से संसाधन मांगे जाएंगे। सितंबर के बाद ही इस दिशा में कुछ करना संभव होगा। जिन स्कूलों में भवन निर्माण के लिए जमीन का अभाव है वहां दो मंजिला भवन बनाया जाएगा। पिछले दिनों जो यू डायस भरे गए उनमें गलत डाटा होने के कारण संसाधनों की व्यवस्था नहीं हो सकी। इस बार यदि डाटा गलत भरा गया तो शिक्षकों की जिम्मेदारी तय कर उनपर कार्रवाई भी की जाएगी।


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