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Corona period में रचनात्‍मक गतिविधियों से जुड़े, अवसाद से बचे रहेंगे आप Prayagraj News

हम अपने चिंतन को चिंता की तरफ से यदि चित्रकला संगीत काव्य नृत्य आदि जैसी रचनात्मक गतिविधियों की दिशा में मोड़ दें तो हमारा मन अवसाद की गलियों में भटकेगा ही नहीं।प्रत्येक मनुष्य का कोई न कोई कलात्मक पक्ष अवश्य होता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 25 Sep 2020 10:47 PM (IST)Updated: Fri, 25 Sep 2020 10:47 PM (IST)
Corona period में रचनात्‍मक गतिविधियों से जुड़े, अवसाद से बचे रहेंगे आप Prayagraj News
आर्यकन्या इंटर कॉलेज की कला शिक्षक अनुपमा श्रीवास्तव बताती हैं कि रचनात्मक कार्य से जुड़ने पर मन भटकता नहीं ।

प्रयागराज,जेएनएन। यह कैसी है बेचैनी कैसी है यह उलझन, दिल लगता नहीं कहीं हो जाती सब से अनबन, क्यों है इतना तू हैरान, क्यों है तू इतना परेशान, ए बंदे, खुद को खुद ही में तलाश कर ले, हो जाएंगी तमाम मुश्किलें आसान। आज के इस कठिन दौर में देखें तो मानव को ही मानव से खतरा हो चला है। सामाजिक मेल मिलाप कम कर देने से व्यक्ति और अधिक अकेला हो गया है। अपने मन की बात कहने के लिए व्यक्ति सोशल मीडिया पर अधिक निर्भर हो गया है। सोशल मीडिया जहां एक तरफ व्यक्ति को अपनी छिपी हुई प्रतिभाओं को प्रदर्शीत करने के लिए मंच प्रदान करता है वहीं दूसरी तरफ व्यक्ति के अवसाद का कारण भी बनता है।

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 खाली समय का ऐसे करें उपयोग

केवल सोशल मीडिया ही नहीं अलग-अलग उम्र में अवसाद के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। आर्यकन्या इंटरकॉलेज की कला की शिक्षक अनुपमा श्रीवास्तव बताती हैं कि व्यक्ति के अवसाद ग्रस्त होने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि कोई व्यक्ति अपने खाली समय का उपयोग किस प्रकार करता है। खाली समय में आपके विचार तनाव से युक्त कटीले रास्ते पे चलतें हैं या रचनात्मकता की फूलों भरी राह पर। हम अपने चिंतन को चिंता की तरफ से यदि चित्रकला, संगीत, काव्य, नृत्य आदि जैसी रचनात्मक गतिविधियों की दिशा में मोड़ दें तो हमारा मन अवसाद की गलियों में भटकेगा ही नहीं।प्रत्येक मनुष्य का कोई न कोई कलात्मक पक्ष अवश्य होता है।

किसी रचनात्मक कार्य से जुड़ने पर नहीं भटकता मन मस्तिष्क

शास्त्रों में भी कहा गया है, सहित्यसंगीतकलाविहीन, साक्षातपशु पुच्छ विषाण हीन। अर्थात जो मनुष्य साहित्य, संगीत, कला से वंचित होता है वह साक्षात पूंछ और सींग से विहीन पशु के समान है। तो क्यों न हम अपने मानव होने को सिद्ध करें और अपने इस कलात्मक पक्ष को जगाएं। अनुपमा कहती हैं कि यदि हम किसी रचनात्मक कार्य से जुड़ जाते हैं तो हमारा मन मस्तिष्क किसी अन्य दिशा में जाता ही नहीं। न भूख लगती है, न प्यास न नींद। समय का तो पता ही नहीं चलता कब पंख लगाकर उडऩे लग जाता है। बस एक ही धुन सवार रहती है कि कब जल्दी से अपने कार्य को पूरा करें। सृजन कार्य करने के पहले से ही मन में अपने कार्य को लेकर विचार उठने लगते हैं । तत्पश्चात जब हम अपनी कृति को दुनिया के सामने लाते हैं तब जो प्रशंसा मिलती है उससे मन प्रसन्न हो जाता है और अवसाद, तनाव,चिंता जैसे मनोविकार छूमंतर हो जाते हैं। प्रशंसा तथा आलोचना दोनों से और अधिक अच्छा कार्य करने की प्रेरणा मिलती है।

स्वयं प्रेरित होती है रचनात्मकता

रचनात्मकता कहीं से अर्जित नहीं कि जाती वरन यह तो स्वयंप्रेरित है। जब आपको लगने लगे कि आपके मन में कोई चिंता है या आप अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं तो खोल दीजिए अपने दिल और दिमाग की खिड़कियों को उठा लीजिए कोई कागज कलम कैनवास ब्रश या कोई वाद्ययन्त्र । बस उतार डालिये वह सब कुछ जो आपके मन में चल रहा है। आप स्वयं ही तरोताजा महसूस करेंगे और अवसादग्रस्त होने से बचे रहेंगे।


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