संगम बांध का हनुमान मंदिर : नियमों पर कुर्बान हो रहा पूजा सामग्रियों का कारोबार Prayagraj News
फिजिकल डिस्टेंस बनाकर मंदिरों में कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए प्रतिबंध का पालन जरूरी भी है। वहीं इससे व्यापार करने वालों पर तगड़ी चोट भी पड़ रही है।
प्रयागराज, जेएनएन। कोरोना वायरस का खौफ का असर भी पड़ रहा है। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन हुआ। लॉकडाउन में सभी मठ, मंदिरों के साथ ही सभी धार्मिक स्थल भी बंद थे। ऐसे में धार्मिक स्थलों के आसपास कारोबार भी प्रभावित हुआ। यही हाल संगम क्षेत्र में बांध स्थित लेटे हनुमान मंदिर का भी देखने को मिला। अनलॉक 01 में कारोबार एक बार फिर शुरू हुआ लेकिन आमदनी न होने से कारोबारी परेशान हैं।
वह कहते हैं कि हमारा तो जैसे व्यापार ही उजड़ गया
बंधवा पर पूजा सामग्री बेचने वाले गोपाल यादव की यह पीड़ा बताती है कि कोरोना संक्रमण ने व्यवस्थाओं में कैसे चरमराहट पैदा कर दी है। वह कहते हैं कि हमारा तो जैसे व्यापार ही उजड़ गया। किसी दिन 150 सौ रुपये से ज्यादा आमदनी नहीं हुई। बस हनुमान जी के पास रोज चार बार अर्जी लगाते हैं कि किसी तरह शाम तक 200 रुपये मिल जाए तो बच्चों को रोटी खिला सकूं। शहर के बड़े व्यापारी और मंदिरों के पुजारी तक बिगड़े हालात पर आंसू बहा रहे हैं।
व्यापार करने वालों पर तगड़ी चोट भी पड़ रही
फिजिकल डिस्टेंस बनाकर मंदिरों में कोरोना संक्रमण फैलने से रोकने के लिए प्रतिबंध का पालन जरूरी भी है। वहीं इससे व्यापार करने वालों पर तगड़ी चोट भी पड़ रही है। पूजा सामग्रियों में लाई, चूड़ा, पेठा, रेवणी, सिंदूर, नारियल, चुनरी, कलावा, इलायची दाना के अलावा मिष्ठान्न भी चढ़ाए जाते हैं। फूल, दूध, अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री का व्यापार भी काफी कम हुआ है। मंदिरों की व्यवस्थाएं जैसे-तैसे ही बन पा रही है। धर्मस्थलों के प्रबंधन से जुड़े लोगों और बड़े व्यापारियों का अनुमान है कि पूजा सामग्री का करोड़ों रुपये का कारोबार प्रभावित हो रहा है।
लाई की मांग 90 प्रतिशत घटी
लाई की आपूर्ति, संगम, बंधवा, कड़े मानिकपुर तक होती रही है। मंदिरों के खुलने के बाद से अब तक सामान्य व्यापार की अपेक्षा 10 प्रतिशत मांग ही रह गई है। इसकी बड़ी वजह है कि मंदिरों में अभी बाहर के जिलों से लोग नहीं आ रहे हैं।
- शिवशंकर गुप्ता, लाई व्यापारी खलीफा मंडी
पूजा सामग्री 10 प्रतिशत ही बिक रही
पूजा सामग्री का बिकना पहले की अपेक्षा 10 प्रतिशत ही रहा गया है। तीन महीने तक सोचते रहे कि भगवान के मंदिर खुलेंगे तो परिवार राहत में आएगा। लेकिन, अब लग रहा है कि घर में ही थे तो तसल्ली थी।
-गोपाल यादव, पूजा सामग्री विक्रेता।
बाहर से लोग नहीं आ रहे
शहर से आने वाले लोग धाॢमक किताबें खरीदने में रुचि कम लेते हैं। बाहर से लोग अभी आ नहीं रहे हैं। सुबह से शाम तक किताब की दुकान खोलकर बैठे रहते हैं किसी दिन तो बोहनी तक नहीं होती।
- मंजुल तिवारी, धाॢमक किताबों के दुकानदार बंधवा
दिन भर में 50 रुपये कमा रहे
सर दिन भर धागा और बच्चों की करधन बेचने के लिए खड़े रह जाते हैं। मंदिर खुले 10 दिन हो गए। किसी दिन 100 रुपये से ज्यादा की बिक्री नहीं हुई। 40-50 रुपये आमदनी हो जाती है, उसी में गुजारा करते हैं।
- कल्लू राम गोस्वामी, धागा विक्रेता
शाम को हो जाती है निराशा
थाल में चंदन की गोडिय़ां जैसे सुबह लेकर आते हैं वैसी ही शाम को लेकर घर लौट जाते हैं। निराशा बहुत होती है, बस बैठे-बैठे भगवान को याद करते रहते हैं कि उनकी कृपा हो तो ग्राहक आएं और कुछ पैसे मिल सकें।
- छाया, चंदन की गोडिय़ां की विक्रेता