अंग्रेजी हुकूमत ने कुंभ के आयोजन में लगाए थे रोड़े
इलाहाबाद संग्रहालय में लगाई गई प्रदर्शनी सौ वर्ष पूर्व कुंभ मेले की व्यवस्था को दिखाती है। अंग्रेजी हुकूमत ने कुंभ के आयोजन में रोड़ा खड़ा किया था जिसका काफी विरोध भी हुआ था।
प्रयागराज : आधुनिकता के साथ धर्म एवं अध्यात्म के दिव्य, भव्य कुंभ में इस बार करोड़ों श्रद्धालुओं ने गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पुण्य की डुबकी लगाई। केंद्र और प्रदेश सरकार ने कुंभ मेला को भव्य रूप देने और दुनिया भर में इसके प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। मेला स्पेशल ट्रेनों के साथ स्नानार्थियों की सुविधा के लिए सैकड़ों बसें भी चलाई गई। वहीं ऐसे इंतजाम अंग्रेजों के शासनकाल में सौ वर्ष पहले नहीं थे। तब इस आयोजन को हतोत्साहित भी किया गया था। इलाहाबाद संग्रहालय की ओर से लगाई प्रदर्शनी में सौ वर्ष पूर्व के कुंभ मेले की व्यवस्था को दर्शाया गया है।
...कुंभ मेला 1918 में लगने वाला था
प्रदर्शनी में नवंबर 1917 को एक पत्र दिखाया गया है, जो तत्कालीन रेलवे बोर्ड अध्यक्ष सर आरडब्ल्यू गिलन ने युनाइडेट प्रांत के तत्कालीन उप राज्यपाल सर जेम्स मेस्टन को लिखा था। कुंभ मेला जनवरी-फरवरी 1918 में लगने वाला था। मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के शामिल होने की आशंका थी। सर गिलन ने लिखा था कि कुंभ में जाने के लिए श्रद्धालुओं को रेलवे टिकट से वंचित किया जाए। सिर्फ सीमित संख्या में ही ट्रेनें ही चलाई जाएं। लिखा था कि मेले के पूर्ण निषेध का तो प्रश्न नहीं उठता, फिर भी कुछ प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
...जितना संभव हो, उतनी कम ट्रेनें चलाई जाएं
प्रदर्शनी में 1918 का एक टेलीग्राम भी लगाया गया है। जो वायसरॉय के निजी सचिव के कार्यालय का है। जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि जितना संभव हो उतनी कम ट्रेनें चलाई जानी चाहिए। कुंभ मेला में टिकट वितरण पर रोक लगाने के सरकार के आदेश के कारण ङ्क्षहदू समाज में गहरा असंतोष था। इसलिए सनातम धर्म सभा इलाहाबाद ने सरकार से अनुरोध किया था कि वह यह रोक हटा ले। एक पत्र में यह भी अनुरोध किया गया था कि आठ से 16 जनवरी और पांच से आठ फरवरी के बीच यदि अधिक ट्रेनें नहीं चलाई जा सकती है तो कम से कम उतनी चलाई जाएं जितनी युद्ध के पहले आमतौर पर चलाई गई हो।