British काल में प्रयागराज में गंगा नदी पर नावों का था पुल, 1857 की क्रांति शांत करने में किया था प्रयाेग
इतिहासकार प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि ऐसे में कर्नल नील को बनारस से बुलाया गया। उसने गंगा नदी पर नावों का पुल बनवाया जिससे अंग्रेज सेना तेजी से शहर में दाखिल हुई क्रांतिकारियों का दमन शुरू हो गया। उसके बाद ही यहां क्रांति की ज्वाला शांत हो सकी थी।
प्रयागराज, जेएनएन। संगम नगरी तीन तरफ से नदियों से घिरी है। शहर से कहीं भी जाना हो तो नदी जरूर पार करना होता है। ऐसे में यहां नदियों पर कई पुल बनाए गए। इसी के चलते प्रयागराज को पुलों का शहर भी कहते हैं। हालांकि जब यह पुल नहीं थे तो नावों से नदियों को पार किया जाता था। बाद में कुछ जगहों पर पांटून पुल भी बनाए गए। दारागंज-झूंसी के बीच तो गंगा नदी पर ब्रिटिश काल में नावों का पुल था जिसका लाभ अंग्रेजों को 1857 की क्रांति को शांत करने में मिला था। वह तेजी से सेना का मूवमेंट कर सके थे।
नावों के पुल से बनारस से प्रयागराज पहुंचा था कर्नल नील
वर्ष 1857 की गदर में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में भी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। मेवातियों व तीर्थ पुरोहितों की इसमें खासी भूमिका थी। जन आक्रोश देखते हुए अंग्रेजों की सेना बैकफुट पर थी। अंग्रेजी सेना में शामिल अधिकांश भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों का साथ छोड़ दिया था। ऐसे में अकबर का किला ही उनके छिपने के लिए मुफीद स्थान था जिसमें छह-सात सौ की संख्या में अंग्रेज सैनिक मौजूद थे जिसमें कुछ सिख थे। इतिहासकार प्रो.योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि ऐसे में कर्नल नील को बनारस से बुलाया गया। उसने गंगा नदी पर नावों का पुल बनवाया जिससे अंग्रेज सेना तेजी से शहर में दाखिल हुई, क्रांतिकारियों का दमन शुरू हो गया। हजारों लोगों को मार दिया गया जिसके बाद ही यहां क्रांति की ज्वाला शांत हो सकी थी।
बरसात के दिनों में टूट जाता था गंगा पर बना नावों का पुल
प्रयागराज से वाराणसी मार्ग पर दारागंज से झूंसी के मध्य गंगा नदी पर बनाया जाने वाला नावों का पुल बरसात के दिनों में नदी में पानी बढऩे के चलते टूट जाता था, तब नावों से लोग गंगा नदी आरपार करते थे। डा. शालिग्राम श्रीवास्तव अपनी पुस्तक प्रयाग प्रदीप में लिखते हैं कि बारिश के दिनों में लोग नावों से गंगा नदी को पार करते थे, कुछ साल के बाद यहां पीपे का पुल बनाया जाने लगा जिससे गंगा नदी के आरपार जाने में आसानी हुई। इस पुल पर महसूल (पथकर) नहीं देना होता था।
दारागंज में सन् 1912 में गंगा पर बनाया गया था रेलवे ब्रिज
ब्रिटिश काल में बंगाल नार्थ वेस्ट रेलवे की ओर से प्रयागराज से बनारस के बीच रेलवे लाइन बिछाने का कार्य शुरू किया गया तब दारागंज-झूंसी के बीच एक पुल बनाने की जरूरत महसूस हुई जिसके बाद दारागंज में रेलवे पुल बनाया गया जिसको उस समय रेलवे के चीफ इंजीनियर रहे मि. आइजेट के नाम पर आइजेट ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इससे टे्रन संचालन में तो आसानी हुई लेकिन सड़क आवागमन पीपे के पुल से ही होता रहा। वाराणसी को जाने वाले भारी वाहनों को फाफामऊ की ओर बने पीपा पुल से गंगा पार कराया जाता था।
शास्त्री ब्रिज बनने के बाद आसान हुई प्रयागराज से वाराणसी की राह
देश की आजादी के बाद प्रयागराज से वाराणसी के बीच आवागमन को सुगम बनाने की मांग शुरू हुई तो गंगा पर एक पुल बनाने का निर्णय लिया गया। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता अजय गोयल बताते हैं कि आवागमन की आवश्यकता को देखते हुए 1966-67 में गंगा नदी पर दारागंज से झूंसी के बीच पुल की नींव रखी गई। बाद में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम दिया गया।
कुंभ मेले में सेना ने यमुना नदी पर बनाया था नावों का पुल
संगम की रेती में हर साल लगने वाले माघ मेले, कुंभ और अर्धकुंभ मेले में भी तमाम अस्थायी पुल बनाए जाते हैं जिससे श्रद्धालु गंगा व यमुना नदी के दोनों तरफ बसने वाले मेला क्षेत्र में आते-जाते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता अभय अवस्थी के मुताबिक एक बार सेना की ओर से यमुना नदी पर सरस्वती घाट के समीप से नावों का पुल बनाया गया था जिसमें सेना की विशेष नावों का प्रयोग किया गया था।