ग्रामीणाें के श्रमदान ने बनाया मिसाल, बेलन नदी पर पुल बनकर तैयार Prayagraj News
निराशा के इस दौर में श्रमदान ने जिले में कुछ ऐसा कर दिखाया जो मिसाल बन गया। कोरांव के ग्रामीणों ने चंदा लगाकर खुद ही बेलन नदी पर पुल बना लिया।
प्रयागराज, [ज्ञानेंद्र सिंह] : गांव की गर्भवती बहू को तड़पते और पत्थर खदान में घायल मजदूर के दर्द ने पुरालक्षन के चिरौंजी लाल कोल को झकझोर दिया था। क्षेत्र में बेलन नदी पर पुल न होने से इलाज के अभाव में कई जान पहले भी जा चुकी थी। अपने ब्लाक मुख्यालय मांडा पहुंचने के लिए लगभग 32 किमी की दूरी तय करनी पड़ती थी। पुल के लिए कोई सुनने वाला न था। न अफसर और न ही जनप्रतिनिधि। कई विधायक और सांसदों से लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से भी लोगों ने इसके लिए मांग की थी। जनप्रतिनिधि सिर्फ आश्वासन देते थे। उनके निर्देश पर सर्वे आदि का काम होता था मगर निर्माण नहीं। निराशा के इस दौर में श्रमदान ने जिले में कुछ ऐसा कर दिखाया जो मिसाल बन गया।
यह हकीकत कोरांव तहसील के मांडा ब्लाक की है
उद्यमशीलता की यह कहानी है यमुनापार के कोरांव तहसील में मांडा ब्लाक की। इस विकास खंड में बहने वाली बेलन नदी के दोनों तरफ 17 गांवों के लोग पुल नहीं होने से परेशान थे। पुल न होने से लोगों को 26 किमी दूरी तय कर तहसील मुख्यालय और 72 किमी दूर जिला मुख्यालय जाना पड़ता था। दुश्वारी के इस दौर में पुरालक्षन गांव के चिरौंजी आगे आए, सैकड़ों लोगों को जोड़ा। फिर शुरू कर दिया पुल निर्माण। बेरी गांव के आनंद प्रकाश शुक्ला उर्फ बबलू शुक्ला तथा पुरालक्षन गांव के सदानंद दुबे से सबसे ज्यादा मदद मिली। दोनों ने चिरौंजी के साथ गांव-गांव जाकर लोगों से आह्वïान किया। फिर क्या था, लोग साथ आते गए। कारवां बनता गया।
खास बातें
- 17 गांवों के आठ सौ से ज्यादा लोगों की सहभागिता बनी मिसाल
- 01 हजार फुट लगभग लंबा और 12 ्रफुट चौड़ा बनाया गया सेतु
- 02 साल पहले बेलन नदी के किनारे बसे लोगों ने शुरू किया था काम
- 01 लाख लोगों को आवागमन में इस पुल से मिलेगी सुविधा
300 ने आर्थिक और निर्माण सामग्री की मदद की
लगभग 16 सौ लोगों ने श्रमदान किया। 300 से ज्यादा लोगों ने आर्थिक और निर्माण सामग्री के रूप में मदद की। किसी ने 10 हजार तो किसी ने 20 हजार रुपये दिए। कई लोगों ने सीमेंट की 20 से सौ बोरी कई लोगों ने सरिया, बालू और गिट्टी की मदद की। इस पुल के निर्माण में श्रमदान समेत लगभग 32 लाख रुपये का खर्च आया है। पुल लगभग तैयार है। केवल सड़क बाकी है, जो जल्दी बन जाएगी।
फूले नहीं समा रहे ग्रामीण
ग्रामीणों की सहभागिता से बने पुल को देख लोग फूले नहीं समा रहे हैैं। पुल निर्माण में सहयोग करने वाले घोरहई के बब्बू सिंह ने बताया कि पूरे इलाके के लोगों को काफी दिक्कत होती थी। अब पुल तैयार है और लोग अपनी लगन और मेहनत पर इतरा रहे हैैं।
इन गांवों के लोगों को मिलेगा लाभ
पांडेयपुर, सिरावल, घोरहई, झरवनियां, बेरी, मडफ़ा, घूघा, सलैया, पियरी, कूदर, हाटा, पूरालक्षन, नेवढिय़ा बयालिस, मझिगवां, पसेरा, गजाधरपुर। इन गांवों को लोगों को अब कई किमी घूमकर ब्लॉक, तहसील और जिला मुख्यालय नहीं जाना पड़ेगा। पुल से अब मुख्यालयों की दूरी कम हो जाएगी।