Book Review : रचना के माध्यम से हमारे बीच सदैव विद्यमान रहता है रचनाकार
Book Review डॉक्टर अनुपम आनंद की लिखित नाट्य पुस्तक पक्ष-विपक्ष पर प्रयागराज में रंग कर्मियों ने परिचर्चा की। वरिष्ठ रंगकर्मी सुषमा शर्मा ने कहा कि नाटक कालिदास द्वारा लिखा मालविकाग्निमित्रम् के फ्रेम को तोड़कर उसी कथानक को एक नए आलेख का सृजन करता हुआ दिखता है।
प्रयागराज, जेएनएन। शाश्वत सांस्कृतिक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित पुस्तक समीक्षा हुई। डॉक्टर अनुपम आनंद की लिखित नाट्य पुस्तक 'पक्ष-विपक्ष' पर परिचर्चा हुई। वरिष्ठ रंगकर्मी सुषमा शर्मा ने कहा कि इस बात का दुख है डॉक्टर अनुपम आनंद हमारे बीच नहीं रहे काल के क्रूर हाथों ने उन्हें हमसे छीन लिया। यह पुस्तक समीक्षा उनको भाव श्रद्धांजलि है। वास्तव में एक रचनाकार अपनी रचना के माध्यम से हमारे बीच में हमेशा विद्यमान रहता है।
'पक्ष-विपक्ष' पुस्तक में डॉक्टर अनुपम आनंद का दिखा हास्य-व्यंग : सुषमा
वरिष्ठ रंगकर्मी सुषमा शर्मा ने कहा कि 'पक्ष-विपक्ष' को पढ़ते समय डॉक्टर अनुपम आनंद का हास्य-व्यंग और उनकी शरारत सर्वत्र दिखाई देता है। नाटक कालिदास द्वारा लिखा मालविकाग्निमित्रम् के फ्रेम को तोड़कर उसी कथानक को एक नए आलेख का सृजन करता हुआ दिखता है। नाटक का मुख्य संदेश है कि सत्ता का पक्ष और विपक्ष लगभग एक ही होता है। उनका परस्पर विरोधी संघर्ष सब दिखावा मात्र है।
भाषा, व्यंग और शैली के अनुरूप और कसावपूर्ण है
कहा कि नाटक में स्पष्ट दृश्य बंद बिंब के माध्यम से उजागर किए गए हैं। भाषा, व्यंग और शैली के अनुरूप और कसावपूर्ण है। अंत तक आते-आते ऐसा लगता है जैसे नाटककार ने अचानक से पटाक्षेप कर दिया हो। 'पक्ष-विपक्ष' का मंचन प्रयागराज के कलाकारों द्वारा हुआ है। कहा कि पक्ष विपक्ष नाटक मुझे लगा की इस नाटक कृति की प्रस्तुति प्रक्रिया के सहारे मै बहुत कुछ सीख सकता हूं। एक नई रंग प्रक्रिया की तलाश में मैं लग गया और अंकुर के कलाकारों के बीच इसका पाठ हुआ। सीमित संसाधनों के साथ इस वैभवशाली राजश्री पृष्ठभूमि में रूपायित होने वाली नाटक की प्रस्तुति किसी पहाड़ को काटकर रास्ता बनाने की कठिन चुनौती जैसी लग रही थी।
तभी हिंदी रंगकर्म को एक गति मिल सकेगी
हमें रंगकर्म करके सीखना चाहिए, तभी हिंदी रंगकर्म को एक गति मिल सकेगी। वरिष्ठ रंगकर्मी मीना उराव इस नाटक में अभिनेत्री के तौर पर काम भी कर चुकी हैं। वह कहती हैं कि 1996 में जब मुझे पता चला कि उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद में नाट्य समारोह का आयोजन होना है और उसके लिए नाटकों का चुनाव होने वाला है। इसका निमंत्रण मुझे भी मिला था मुझे एक अच्छे नाटक की तलाश थी। तब मुझे पता चला कि डॉक्टर अनुपम आनंद द्वारा लिखित नाटक पक्ष विपक्ष नटरंग पत्रिका में प्रकाशित हुई है मैंने उसे पढ़ा और डॉक्टर अनुपम आनंद सर से बात की उन्होंने सहर्ष नाटक का मंचन के लिए स्वीकृति दे दी।
'पक्ष-विपक्ष' में वह सारे गुण हैं जो एक संपूर्ण नाटक में होने चाहिए
नाटक पढ़कर लगा कि इसमें वह सारे गुण हैं जो एक संपूर्ण नाटक में होने चाहिए। पक्ष विपक्ष में कई ऐसा ही है जो इसे लोकप्रियता के शिखर पर ले जा सकते हैं। 'पक्ष-विपक्ष' में निर्देशक की कल्पनाशीलता के लिए विस्तृत संभावनाएं हैं। यह नाटक महाकवि कालिदास द्वारा लिखित मालविकाग्निमित्रम् के कथानक को लेकर एक आधुनिक राजनैतिक सत्ता के खेल को दर्शाता है। 'पक्ष-विपक्ष' नाटक का मंचन सर्वप्रथम उत्तर मध्य क्षेत्र चयसांस्कृतिक केंद्र इलाहाबाद में हुआ था। यह नाटक पक्ष विपक्ष 22 दिसंबर 1996 में हुआ था। मंचन से पहले नटरंग पत्रिका में प्रकाशित हो चुका था।
नाटक में राजनीतिक रंग का चरित्र दिखता है : ऋतंधरा
वरिष्ठ रंगकर्मी ऋतंधरा मिश्रा पुस्तक परिचर्चा की आयोजक रहीं। कहा कि डॉक्टर अनुपम आनंद हमारे बीच नहीं रहे किंतु उनकी इच्छा थी कि उनकी पुस्तक 'पक्ष-विपक्ष' नाटक पर हम लोग परिचर्चा करें। लगभग सभी नाटकों के परिचर्चा और गोष्ठियों में बड़े ही उत्साह पूर्वक वह हिस्सेदारी लेते थे। डॉ. अनुपम आनंद के इस नाटक में राजनीतिक रंग का जो चरित्र सामने दिखता है, उसमें यही लगता है कि जनता ही आज भी छली जा रही है। नाटक पढ़ते वक्त लगा मालविकाग्निमित्रम् पढ़ रही हूं। डॉक्टर अनुपम आनंद ने सत्ता के स्वार्थ को अपने व्यंगात्मक शैली मैं पिरोने की एक अच्छी कोशिश की है जिसमें सफल भी रहे हैं।