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Birth Anniversary of Dr. Harivansh Rai Bachchan : बच्चन की वजह से कवियों को मिला मानदेय

Birth Anniversary of Dr. Harivansh Rai Bachchan डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने 50 से अधिक कृतियां लिखी थी। कम लोग जानते हैं कि मधुशाला को चर्चित करने में सरस्वती पत्रिका की अतुलनीय भूमिका थी। सरस्वती के दिसंबर 1933 के अंक में प्रकाशित होकर लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गई।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 02:10 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 02:10 PM (IST)
Birth Anniversary of Dr. Harivansh Rai Bachchan : बच्चन की वजह से कवियों को मिला मानदेय
कम लोग जानते हैं कि मधुशाला को चर्चित करने में सरस्वती पत्रिका की अतुलनीय भूमिका थी।

  प्रयागराज,जेएनएन। वाकया 1951 का है। होली का मौका था। अग्रवाल समाज के लोग प्रयागराज में कवि सम्मेलन कराना चाहते थे। रामकैलाश अग्रवाल के नेतृत्व में आयोजन से जुड़े कुछ लोग डॉ. हरिवंश राय बच्चन से मिलने उनके कटघर स्थित घर गए। बच्चन को उन्होंने कवि सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया। बच्चन ने आने के लिए हामी भर दी। फिर पूछा, कवियों को क्या दोगे? रामकैलाश बोले, 'देना का है गुरु। मंच पर माला पहनाय देब। चाय- नाश्ता के साथ भोजन के व्यवस्था है...'। बच्चन बोले, कवियों के पास भी पेट और जेब है, उनकी भी जरूरतें हैं। आप टेंट, बिजली वालों को पैसा देते हो। लेकिन, जिन कवियों से महफिल में चार-चांद लगता है उन्हें पैसा क्यों नहीं देते? यह सुनकर रामकैलाश बोले, 'कवियन का पइसा देय के परंपरा तो कहीं नए ने...'। फिर बच्चन ने कहा, 'हर परंपरा कभी न कभी, कोई न कोई शुरू करता है तो इसे आप आरंभ कर दें।'

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वरिष्ठ कवि यश मालवीय बताते हैं कि उक्त सम्मेलन में आयोजकों ने 51 रुपये बच्चन व 21-21 रुपये का मानदेय उमाकांत मालवीय व गोपीकृष्ण गोपेश को दिया था। तब से कवियों को हर सम्मेलन में मानदेय मिलने लगा। पद्मभूषण हरिवंश राय बच्चन 27 नवंबर 1907 को प्रतापगढ़ में जन्मे थे। लेकिन, उनकी कर्मभूमि प्रयागराज थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी का शिक्षक होने के साथ उन्हें यहीं से साहित्यिक पहचान मिली। उन्होंने 1929 में तेरा हार, 1935 में मधुशाला, 1936 में मधुबाला, 1937 में मधुकलश, आत्म परिचय सहित 26 रचनाएं लिखी। जबकि 1969 में लिखी गई उनकी आत्मकथा 'क्या भूलूं क्या याद करूं ' काफी चर्चित रही।

 

सरस्वती से चर्चित हुई मधुशाला  

डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने 50 से अधिक कृतियां लिखी थी। लेकिन, उन्हें पहचान मधुशाला ने दिलाई। कम लोग जानते हैं कि मधुशाला को चर्चित करने में सरस्वती पत्रिका की अतुलनीय भूमिका थी। सरस्वती के दिसंबर 1933 के अंक में प्रकाशित होकर लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गई। साहित्यिक चिंतक व्रतशील शर्मा बताते हैं कि ठाकुर श्रीनाथ सिंह ने सरस्वती पत्रिका के प्रधान संपादक पं. देवीदत्त शुक्ल के सामने बच्चन की कृति मधुशाला को प्रस्तुत करके बताया कि अंग्रेजी के प्राध्यापक होते हुए भी उन्होंने हिंदी काव्यानुराग के कारण 'मधुशाला ' जैसी अनूठी कृति की रचना की है। इससे पं. देवीदत्त काफी प्रभावित हुए। उन्होंने मधुशाला के 20 छंदों का चयन कर पत्रिका में प्रकाशित करने की सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी। यहीं नहीं, प्रोत्साहनपरक संपादकीय टिप्पणी करते हुए लिखा था,  'हिंदी में इधर कुछ समय से उमर खयाम के ढंग पर रूबाइयां भी लिखी जाने लगी हैं। श्रीयुत हरवंशराय बी.ए. ने इस दिशा में विशेष सफलता प्राप्त की है। इन्होंने 108 बड़ी  सुंदर रुबाइयां लिखी हैं, उनमें से कुछ यहां दी जाती हैं।' इसके बाद बच्चन और मधुशाला एक तरह से एकाकार-से हो गए।

लोकप्रियता मिलने पर बच्‍चन ने मधुशाला को पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित किया

लोकप्रियता मिलने पर बच्चन ने मधुशाला को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। सरस्वती पत्रिका के सह-संपादक अनुपम परिहार कहते हैं कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, पं. देवीदत्त शुक्ल जैसे अनेक संपादकों ने नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करते थे। पं. देवीदत्त ने उसी कारण मधुशाला को प्रकाशित किया। धार्मिक स्वभाव होने के बावजूद उन्होंने मधुशाला को सामाजिक समरसता के रूप में देखा था। उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलते हुए हम वरिष्ठ रचनाकारों को सम्मान देते हुए नए लेखकों की रचनाएं प्रकाशित करेंगे।


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