Ayodhya Ram Mandir : पहले की कारसेवा, अब मंदिर निर्माण में श्रमदान की हसरत
Ayodhya Ram Mandir अखिलेश कुमार राय ने चबूतरा बनाने के लिए सीमेंट-गिट्टी ढोया था। उसके 28 साल बाद वह मंदिर निर्माण में श्रमदान करने की इच्छा रखते हैं।
प्रयागराज,जेएनएन। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए चबूतरा बनाने, शिला पूजन में कारसेवा करने वालों का मन फिर कुलांचे भर रहा है। उनकी हसरत है कि श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण में वह श्रमदान करें। मंदिर निर्माण के दौरान अयोध्या जाकर पत्थर, ईंट ढोकर अपना जीवन सफल करना चाहते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्रमणि त्रिपाठी उन्हीं लोगों में हैं। वह 1990 व 1992 की कारसेवा में शामिल हुए थे। जब छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराया गया था। तब इनके जिम्मे कारसेवकपुरम् अयोध्या की व्यवस्था थी। वहां कारसेवकों की देखरेख की जिम्मेदारी संभाले थे।
श्रमदान की इच्छा जरूरी पूरी करूंगा
देवेंद्रमणि कहते हैं कि श्रीराम मंदिर बनने के लिए भूमि पूजन किसी सुखद सपने के पूरा होने जैसा है। वह अयोध्या जाकर सिर पर पत्थर रखकर श्रमदान करेंगे। कुछ ऐसी ही ख्वाहिश संजय श्रीवास्तव की है। 1992 की कारसेवा में सक्रिय भूमिका निभाने वाले संजय बताते हैं कि तब उनकी उम्र महज 24 साल थी। श्रीराम मंदिर के लिए जीने-मरने का जज्बा मन में था। वह जज्बा आज भी कायम है। मंदिर बनने जा रहा है तो उसमें श्रमदान करने की इच्छा को जरूर पूरी करूंगा।
चबूतरा बनाने के लिए सीमेंट-गिट्टी ढोया था
नौ नवंबर 1989 को विश्व हिंदू परिषद की ओर से श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास कराया गया। जुलाई 1992 में उसी स्थल पर कंक्रीट का विशाल चबूतरा तैयार कराया गया। अखिलेश कुमार राय ने चबूतरा बनाने के लिए सीमेंट-गिट्टी ढोया था। उसके 28 साल बाद वह मंदिर निर्माण में श्रमदान करने की इच्छा रखते हैं। कहते हैं कि मंदिर निर्माण के दौरान वह अयोध्या जाकर यथासंभव श्रमदान करेंगे। कारसेवा में हिस्सा लेने वाले सूर्यकांत तिवारी कहते हैं कि श्रीराम मंदिर निर्माण होना राष्ट्र के लिए शुभ संकेत है। भारत अखंड राष्ट्र की ओर बढ़ रहा है, हर व्यक्ति उसमें योगदान देने को लालायित है।