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Ayodhya Ram Mandir : बुद्धिजीवियों को श्रीराम मंदिर से जोडऩे का सेतु बनी अरुंधती पीठ Prayagraj News

Ayodhya Ram Mandir बुद्धिजीवियों को राममंदिर से जोडऩे में सेतु बनने में वैसे कई संस्थाओं ने भूमिका निभाई उनमें अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ प्रयागराज सबसे आगे रही।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 06:48 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 07:07 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir : बुद्धिजीवियों को श्रीराम मंदिर से जोडऩे का सेतु बनी अरुंधती पीठ Prayagraj News
Ayodhya Ram Mandir : बुद्धिजीवियों को श्रीराम मंदिर से जोडऩे का सेतु बनी अरुंधती पीठ Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के पक्ष में देश का बहुसंख्यक समाज वर्षों से रहा है लेकिन बुद्धिजीवी तबके का तर्कों व चंद साक्ष्यों से वैसा जुड़ाव नहीं बन पा रहा था। बुद्धिजीवियों को राममंदिर से जोडऩे में सेतु बनने में वैसे कई संस्थाओं ने भूमिका निभाई, उनमें अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ प्रयागराज सबसे आगे रही। विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक रहे स्व. अशोक सिंहल ने 2007 में इस पीठ की स्थापना की। अशोक सिंहल के निवास 'महावीर भवन' में उसका मुख्यालय बनाया गया। 

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इस केंद्र ने मंदिर के अस्तित्व को साक्ष्यों के साथ प्रकट किया

संस्था ने बौद्धिक लोगों के बीच श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर के अस्तित्व को साक्ष्यों के साथ प्रकट किया। यह कार्य केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद हुआ। नरेंद्र मोदी 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब संतों व हिंदू समाज को आशा थी कि वह श्रीराम मंदिर के लिए जरूर उचित कदम उठाएंगे। दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी, प्रयागराज, जयपुर, धर्मशाला, शिमला, कानपुर, रुद्रपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़, हैदराबाद आदि शहरों में वामपंथी व अन्य विचारधारा के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में सेमिनार कराया। इसमें में सेवानिवृत्त जज, नौकरशाह, पुलिस अधिकारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, कुलपति, प्रोफेसर, साहित्यकार आदि शामिल हुए।

सेमिनार में झेलना पड़ा विरोध

अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ के निदेशक डॉ. चंद्रप्रकाश सिंह बताते हैं कि नौ, 10 जनवरी 2016 को दिल्ली विश्वविद्यालय में 'श्रीराम जन्मभूमि मंदिर : उभरता परिदृश्य' विषय पर अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ ने सेमिनार आयोजित किया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दो पूर्व उप महानिदेशक, केंद्र सरकार के तत्कालीन दो एडिशनल सॉलिसिटर, दो विश्वविद्यालयों के कुलपति, इतिहासकारों को शामिल होना था। सेमिनार के खिलाफ एक सप्ताह पहले वामपंथी संगठनों, कांग्रेस सहित 16 संगठन एकजुट हो गए थे। फिर पुलिस व अर्धसैनिक बल का भारी प्रबंध करके सेमिनार कराया गया।

अशोक सिंहल स्मृति व्याख्यान

इसके बाद श्रीराम जन्मभूमि पर पुन: दिल्ली विश्वविद्यालय में नौ फरवरी 2019 को 'श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन और राष्ट्रीय पुनर्जागरण' विषय पर रखा गया। इसमें दो कुलपति, कई कालेजों के प्रधानाचार्य, इतिहासकार पुरातत्वविद्, कानूनविद् व शोध छात्र शामिल हुए। श्रीराम जन्मभूमि पर अंतिम कार्यक्रम 17 नवंबर 2019 को अशोक सिंहल स्मृति व्याख्यान के अंतर्गत 'श्रीराम जन्मभूमि: स्थिति एवं संभावनाएं' विषय पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कराया गया।

2008 से प्रकाशन का शुरू

अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ ने श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर होने के पुरातात्विक, विधिक ऐतिहासिक साक्ष्यों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। इसके लिए 2008 से अभी तक 'द जर्नल ऑफ इंडियन थॉट एंड पॉलिसी रिसर्च' नामक पुस्तक के 10 अंक प्रकाशित किए गए हैं। हिंदी व अंग्रेजी में प्रकाशित पुस्तक को विश्वविद्यालयों के साथ विदेशों में भी भेजा गया।

डॉ. मुरली मनोहर जोशी बने पहले अध्यक्ष

अरुंधती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ की स्थापना भारतीय रीति-नीति परंपरा, संस्कृति परंपरा, धार्मिक खासियत पर शोध करके उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए हुई है। भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी पीठ के पहले अध्यक्ष थे, जबकि भाजपा के राज्यसभा सदस्य डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी मौजूदा समय में पीठ के अध्यक्ष हैं। पीठ श्रीराम जन्मभूमि के अलावा गंगा संरक्षण, आर्थिक उत्थान, शैक्षणिक विकृतियों, विधिक आदि विषयों पर 150 से अधिक सेमिनार व कार्यशाला करा चुकी है। साथ ही 30 पुस्तकों का प्रकाशन कराया है।


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