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पूर्णिमा के साथ भद्रा लगने से होलिका दहन में पेच, जानें सही समय

रंगपर्व होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। इस बार होलिका दहन पर भद्रा की छाया रहेगी। ज्‍योतिर्विद बताते हैं शुभ मुहुर्त में ही इस परंपरा को पूरा करना चाहिए।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 12:33 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 12:33 PM (IST)
पूर्णिमा के साथ भद्रा लगने से होलिका दहन में पेच, जानें सही समय
पूर्णिमा के साथ भद्रा लगने से होलिका दहन में पेच, जानें सही समय

प्रयागराज : पूर्णिमा के साथ भद्रा लगने से होलिका दहन में पेच फंसा है। भद्रा में होलिका दहन करना वर्जित है। इसके चलते 20 मार्च की रात भद्रा खत्म होने की प्रतिक्षा करनी होगी। भद्रा खत्म होने के बाद सवा आठ बजे तक होलिका दहन किया जा सकेगा। होलिका दहन के अगले दिन गुरुवार को रंगों का पर्व होली मनाया जाएगा।

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20 मार्च की रात 8.15 बजे से है मुहुर्त : ज्योतिर्विद देवेंद्र

ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि मंगलवार को दिन में 11.42 बजे चतुर्दशी तिथि लग रही है। जो बुधवार की सुबह 9.19 बजे तक रहेगी। इसके बाद पूर्णिमा लग जाएगी। पूर्णिमा बुधवार को सुबह 9.20 बजे से गुरुवार को सुबह 7.03 बजे तक रहेगी। बुधवार को पूर्णिमा के साथ 8.12 बजे तक है। भद्रा खत्म होने के बाद बुधवार की रात 8.15 बजे से होलिका दहन होना चाहिए।

कहा, भद्रा में होलिका दहन वर्जित है

ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी  बताते हैं कि भद्रा में होलिका दहन व राखी बांधना वर्जित है। वहीं होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर होना आवश्यक है। इसके चलते बुधवार को होलिका दहन किया जाएगा। होलिका दहन सामाजिक एवं व्यक्ति के अंदर व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने एवं विचारों का शुद्धिकरण करने का माध्यम है। वसंत पंचमी से अबीर-गुलाल के साथ प्रह्लाद की पूजा करके उनके नाम पर लकड़ी रखकर इसकी शुरुआत की जाती है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाया जाता है।

यम-नियम से दहन करें होलिका

ज्योतिर्विद आशुतोष वाष्र्णेय बताते हैं कि होलिका दहन से निकलने वाली लौ व धुआं वातावरण में व्याप्त विकृतियों को नष्ट करके उसे पवित्र करते हैं। साथ ही इसे तापने एवं दूसरे दिन राख को माथे पर लगाने वाले मानव का मन-मस्तिष्क पवित्र हो जाता है। होलिका जलाने से पूर्व स्नान करके शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण करें, फिर हाथ में गंगा जल अथवा शुद्ध जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद पूरब की ओर मुंह करके होलिका में जल, अक्षत, पुष्प, मिष्ठान, अबीर-गुलाल, मदार, पीपल, गुलर, कुषा, समी, दूब, पलाश अर्पित करें। इसके बाद अगरबत्ती, धूपबत्ती व घी का दीपक जलाकर व्रतराज पुस्तक के डुंडा राक्षसी कथा का पाठ करके होलिका दहन करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है।


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