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August Kranti: ऐतिहासिक आनंद भवन में बना था अगस्‍त क्रांति का मसौदा, गांधीजी व सरदार पटेल थे शामिल

August Kranti इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रो. योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देकर देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। इसे ही अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 09 Aug 2021 07:30 AM (IST)Updated: Mon, 09 Aug 2021 07:55 AM (IST)
August Kranti: ऐतिहासिक आनंद भवन में बना था अगस्‍त क्रांति का मसौदा, गांधीजी व सरदार पटेल थे शामिल
प्रयागराज का ऐतिहासिक आनंद भवन, जहां अगस्‍त क्रांति का मसौदा तैयार किया गया था।

प्रयागराज, [अमलेंदु त्रिपाठी]। यूं तो अगस्त क्रांति नौ अगस्त 1942 को मुंबई में शुरू हुई लेकिन इसका मसौदा संगमनगरी स्थित ऐतिहासिक आनंद भवन में तैयार किया गया। महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौजूदगी में हुई मंत्रणा में आर-पार की लड़ाई पर सहमति बनी। नतीजा यह हुआ कि प्रत्येक आंदोलनकारी ने करो या मरो के मंत्र को आत्मसात किया। यही वजह रही कि प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) के युवाओं और किशोरों ने भी खुद को देश के लिए आत्मोत्सर्ग करने में पीछे नहीं रखा। आए दिन तिरंगा यात्रा निकालते और पुलिस से दो दो हाथ भी करते।

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महात्‍मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ों का दिया नारा : प्रो. योगेश्वर तिवारी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रो. योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा देकर देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। इसे ही अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है। इसे लेकर तमाम बैठकें आनंद भवन में हुईं। यही वजह रही कि नौ अगस्त को आनंद भवन को पुलिस ने चारों तरफ से घेर रखा था। इंदिरा गांधी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। शहर में उस समय आंदोलन का नेतृत्व विजय लक्ष्मी की पुत्री नयन तारा सहगल ने किया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विरोध के स्वर इस कदम फूटे कि लोग छोटे छोटे गुटों में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगाते हुए सड़क पर आने लगे। अंग्रेजों ने भी दमन चक्र तेज कर दिया।

12 अगस्त को बलिदान हुए थे दो लाल

नौ अगस्त को क्रांति का बिगुल बजने के चार दिन बाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए शहर के दो लाल बलिदान हुए। इनमें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बीएससी के छात्र लाल पद्मधर और अहियापुर निवासी 14 वर्षीय रामेश दत्त मालवीय प्रमुख हैं। प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि 12 अगस्त 1942 करे जगह-जगह लोग तिरंगा लेकर सड़क पर उतर आए थे। एक जुलूस इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामने से निकला। इसमें लाल पद्मधर भी थे। मनमोहन पार्क के पास पहुंचने पर पुलिस ने चेतावनी दी कि आगे बढऩे पर गोली मार दी जाएगी। लाल पद्मधर ने कहा, मारो, देखते हैं कितनी गोलियां फिरंगियों की बंदूक में हैं...।

गोली लगी लेकिन लाल पद्मधर ने तिरंगा नहीं छोड़ा

बस उसी समय एक गोली लाल पद्मधर के सीने को चीरते हुए निकल गई, फिर भी उन्होंने तिरंगे को नहीं छोड़ा। दूसरा वाकया लोकनाथ चौराहे पर हुआ। तिरंगा लेकर निकले सीएवी के छात्र रमेश दत्त मालवीय की झड़प अंग्रेजी हुकूमत की बलूच रेजीमेंट के जवानों से हुई। उन्होंने एक सिपाही के सिर पर ईंट दे मारी। वहां मौजूद अन्य सिपाहियों ने उनके सीने में गोली उतार दी और वह वीरगति को प्राप्त हुए।


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