अब पीआरओ ने भी जारी किए महिला के तीन टेप
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. चितरंजन कुमार अब पीआरओ ने महिला के तीन टेप भी जारी किए हैं। हालांकि यह टेप कहां से मिला नहीं बता सके।
जासं, इलाहाबाद : इविवि के छात्रनेताओं की ओर से वीसी से जुड़ा कथित स्क्रीन शॉट और ऑडियो वायरल किए जाने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. चितरंजन कुमार की ओर से भी गुरुवार को तीन टेप मीडिया को जारी किए गए हैं। तीनो टेप 1.34 मिनट, 2.02 मिनट और 2.31 मिनट के हैं। पीआरओ ने इसमें उसी महिला के होने का दावा किया है, जिससे वीसी की बातचीत का दावा अभी तक छात्रनेता कर रहे थे। हालांकि, इन तीनो टेप में महिला से बातचीत करने वाले शख्स की आवाज ही नहीं है। टेप में केवल दूसरे पक्ष की हूं हूं की आवाज ही सुनाई दे रही है। पीआरओ यह नहीं बता सके हैं कि उन्हें यह टेप कहां से मिला और इसमें दूसरे पक्ष की आवाज क्यों नहीं है?
पीआरओ डॉ. चितरंजन के अनुसार सोशल मीडिया में जिस महिला का जिक्र बार-बार किया जा रहा है। गुरुवार को उन्होंने खुद अपना पक्ष रखा। उनका स्पष्ट कहना है कि अविनाश दुबे साजिश के तहत कुलपति और विवि को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। वह महिला स्वयं अविनाश पर एफआइआर करवाना चाहती है। इस मामले में छात्रसंघ अध्यक्ष अवनीश यादव और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह की भी भूमिका है। आप यह रिकॉर्डिंग सुनें और खुद तय करें कि सारे घटनाक्रम के पीछे कौन हैं ? कहा है कि जिस चैट और ऑडियो क्लिप के आधार पर हंगामा शुरू हुआ। उसकी प्रमाणिकता संदेह में है।
बकौल पीआरओ हमारे हाथ कुछ ऐसे ऑडियो क्लिप लगे हैं, जिसमें महिला कह रही है कि इस पूरे प्रकरण से उसका कोई भी संबंध नहीं है। वह कहती है कि ऋचा ने दो-दो बार फोन करके उसपर दबाब बनाया और कहा कि वह उससे अपनी बात कहे। ऑडियो में महिला ऋचा के लिए नकारात्मक भाव दिखाती है। महिला अविनाश दुबे के लिए बहुत घटिया आदमी शब्द का भी प्रयोग करती है। पीआरओ के अनुसार महिला ने अलग अलग लोगों से बातचीत में बार-बार अपना स्टैंड बदला।
इविवि की जांच कमेटी महज मामले पर लीपापोती :
छात्रसंघ व छात्रसंघ मोर्चा ने कहा है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय पूरे प्रकरण की लीपापोती करने में जुटा हुआ है। जब केंद्र सरकार के मानव विकास संसाधन विकास मंत्रालय ने पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है और वह स्वयं जांच कर रहा हैं तो ऐसे में विश्वविद्यालय द्वारा जांच कमेटी बनाना कहां तक उचित है। कुलपति के मातहतों द्वारा जांच कमेटी का ऐलान करना मामले से ध्यान हटाने का प्रयास मात्र है। प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत कहता है हमेशा जांच के ऐलान का अधिकार विषय वस्तु से बड़े अधिकारी को होता है ना कि उसक मातहतों को। प्राकृतिक न्याय का एक स्थापित सिद्धांत है कि 'नोबडी कैन सिट इन हिज ओन जजमेंटÓ के विपरीत है जो कुलपति के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं वे उनकी जांच नहीं कर सकते हैं न ही उनकी जांच करा सकते हैं। यह जांच की प्रक्रिया का ऐलान करना ऐसे लगता है जैसे बिल्ली को दूध की रखवाली दे देने जैसा है। कुलपति महोदय ने किस से कहा कि वह कैंपस में तब तक प्रवेश नहीं करेंगे जब तक जांच चलेगी। इस आशय का कुलपति का लिखित पत्र की छात्रसंघ और छात्र संघर्ष मोर्चा मांग करता है।
कुलपति की निजता पर हमला करनेवाले दंडित हों : डॉ. निरंजन
स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भरतीय सह प्रचार प्रमुख डा निरंजन सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रतनलाल हांगलू की एक महिला के साथ कथित बातचीत का आडियो जारी किए जाने को उनकी निजता पर हमला बताते हुए दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह ना सिर्फ विश्वविद्यालय की गरिमा के विरुद्ध है, बल्कि भारतीय टेलीग्राफ कानून का भी उल्लंघन है ।