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Allahabad University Establishment Day: किराए के भवन में 13 छात्रों के साथ हुई थी शुरुआत, पढ़िए पूरा इतिहास

23 सितंबर 1887 को किराए के भवन में 13 विद्यार्थियों के साथ शुरूआत करने के बाद आज इवि की शाखाएं कई पेड़ों में बदल गई हैं। अतंरिक्ष तक की पढ़ाई यहां होती है। अब यह विश्वविद्यालय 35 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों और 400 से अधिक शिक्षकों का परिवार है

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 22 Sep 2022 11:35 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 12:37 AM (IST)
Allahabad University Establishment Day: किराए के भवन में 13 छात्रों के साथ हुई थी शुरुआत, पढ़िए पूरा इतिहास
इलाहाबाद विश्वविद्यालय आज यानी 23 सितंबर को अपना 136वां स्थापना दिवस बना रहा है

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। Allahabad University Establishment Day: जितनी शाखाएं उतने ज्यादा पेड़ के ध्येय वाक्य को धारण करने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय आज यानी 23 सितंबर को अपना 136वां स्थापना दिवस बना रहा है। किराए के भवन में 13 विद्यार्थियों के साथ शुरूआत करने के बाद आज इवि की शाखाएं कई पेड़ों में बदल गई हैं। सूक्ष्म जीवों से लेकर लेकर अंतरिक्ष तक की पढ़ाई यहां होती है।

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अब यह विश्वविद्यालय 35 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों और चार सौ से अधिक शिक्षकों का भरा पूरा परिवार है। अपनी स्थापत्य कला और योग्य शिक्षकों के कारण पूरब का आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नगीनों में विश्व विख्यात साहित्यकारों से लेकर विश्व प्रसिद्धा विज्ञानियों के अनगिनत नाम शामिल हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के प्रोफेसर डा. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि एक जुलाई 1872 को विलियम म्योर के नाम पर म्योर सेंट्रल कालेज की स्थापना की गई थी। 24 मई 1867 को विलियम म्योर ने स्वतंत्र महाविद्यालय खोलने की इच्छा जताई। 1869 में समिति बनी। इसके अवैतनिक सचिव प्यारे मोहन बनर्जी थे। इन लोगों ने 16 हजार रुपये चंदा जुटाने का संकल्प लिया।

इसके बाद लाला गया प्रसाद, प्यारे मोहन बनर्जी, राय रामेश्वर चौधरी सहित कई समाजसेवियों ने इसको लेकर आंदोलन छेड़ा। विलियम म्योर ने इसको मंजूरी देते हुए इस काम के लिए दो हजार रूपये दान में दिए थे। तय हुआ कि किराए पर भवन लेकर कालेज शुरू किया जाएगा। विमियम म्योर के कहने पर दरभंगा कैसल के मालिक से 275 रुपये प्रतिमाह किराए पर तीन साल के लिए भवन लीज पर लिया गया।

पहले था नाम म्योर सेंट्रल कालेज

प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं विलियम म्योर के नाम पर म्योर सेंट्रल कालेज का नाम पड़ा। कालेज बनने के बाद जब तक नई ईमारत बनकर तैयार नहीं हुई, तब तक किराए गए दरभंगा कैसल में कक्षाएं चलती थी। 1886 में इमारत बनकर तैयार हो गई। इसके बाद 23 सितंबर 1887 को म्योर सेंट्रल कालेज को विश्वविद्यालय का दर्जा मिल गया। प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि मार्च 1888 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पहली प्रवेश परीक्षा हुई थी।

मदन मोहन मालवीय के गुरु थे पं. आदित्यराम भट्टाचार्य

मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के पूर्व प्रो. हेरंब चतुर्वेदी ने बताया कि इलाहाबाद सेंट्रल कालेज था जो बाद में म्योर सेंट्रल कालेज बना और वहीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की जननी थी। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले दो भारतीय शिक्षकों में मौलवी जकाउल्ला थे जो फारसी, अरबी और उर्दू पढ़ाते थे और दूसरे थे पंडित आदित्यराम भट्टाचार्य । आदित्यराम भट्टाचार्य ने महामना मदन मोहन मालवीय को गढ़ा था।

1915 में कला संकाय के दो विभाग इतिहास विभाग और अर्थशास्त्र विभाग बनते हैं। वे कहते हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में मेघनाथ साहा, नीलरत्न धर जैसे वैज्ञानिक इवि ने दिए तो साहित्य क्षेत्र में हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा, धर्मवीर भारती, फिराक गोरखपुरी जैसे साहित्यकार और शायर दिए। राजनीति की बात करें तो राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जैसे नेताओं ने यही से राजनीति का ककहरा सीखा।

इस बार छात्र आंदोलन की भेंट चढ़ेगा स्थापना दिवस

इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपना स्थापना दिवस काफी भव्य तरीके से आयोजित करता है। अपने क्षेत्र के ख्यतिलब्ध लोगों को आमंत्रित किए जाने की परंपरा रही है। इस बाद छात्र आंदोलन की वजह से इवि में स्थापना दिवस समारोह का आयोजन नहीं होगा। कुछ विभाग अपने स्तर पर कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे।


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