हाई कोर्ट ने भाई की पत्नी को जलाकर मारने में आरोपितों की उम्रकैद सजा रखी बरकरार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि मृत्युकालिक कथन (डाइंग डिक्लरेशन) विश्वसनीय साबित होता है तो वह सजा देने के लिए पर्याप्त साक्ष्य होगा।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि मृत्युकालिक कथन (डाइंग डिक्लरेशन) विश्वसनीय साबित होता है तो वह सजा देने के लिए पर्याप्त साक्ष्य होगा। कोर्ट ने कानपुर नगर के नवाबगंज में अपने भाई की पत्नी को जलाकर मार डालने के आरोपितों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान होने से पूर्व सरकारी डॉक्टर ने उसकी मानसिक स्थिति सही होने और बयान देने योग्य होने की पुष्टि की थी। मृतका के झूठा बयान दिए जाने का कोई आधार साबित नहीं किया जा सका है। इसलिए बयान विश्वसनीय है।
अपील पर न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है। घटना 24 मार्च 2019 की है। कानपुर के नवाबगंज में रहने वाले कृपाशंकर गुप्ता और शंकर गुप्ता का परिवार एक ही मकान के दो अलग-अलग हिस्सों में रहता था। घटना वाली रात करीब साढ़े नौ बजे कृपा शंकर गुप्ता की पत्नी रिंकी को शंकर गुप्ता की पत्नी मुन्नी देवी, बेटी मोहिनी और बेटे आशीष उर्फ भुव ने मिट्टी का तेल डालकर जला दिया था। उसे बचाने में कृपाशंकर के हाथ भी झुलस गए। उसने तीनों अभियुक्तों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिंकी गुप्ता को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। मरने से पहले उसने अपने पति और फिर विवेचक तथा अंत में मजिस्ट्रेट को दिए बयान में तीनों अभियुक्तों द्वारा जलाने की बात बताई थी।
बचाव पक्ष की ओर से मृत्यु पूर्व बयान को संदिग्ध बताया गया। कहा गया कि रिंकी गंभीर रूप से जली थी वह इस स्थिति में नहीं थी बयान दे सके। कोर्ट ने पाया कि रिंकी का मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान होने से पूर्व सरकारी डॉक्टर ने उसकी मानसिक स्थिति सही होने और बयान देने योग्य होने की पुष्टि की थी। मृतका द्वारा झूठा बयान दिए जाने का कोई आधार साबित नहीं किया जा सका है। इसलिए बयान विश्वसनीय है।