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Allahabad High Court: पश्चिमी खंडपीठ पर केंद्रीय मंत्री के बयान से भड़के वकीलों ने लगाए नारे

वकीलों ने केंद्रीय कानून राज्य मंत्री एसपीएस बघेल के पश्चिमी खंडपीठ के बारे में दिए बयान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं ने कहा कि उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास व अस्मिता से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। अधिवक्ताओं ने मंत्री के बयान की भर्त्सना की है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 06:54 PM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 06:54 PM (IST)
Allahabad High Court: पश्चिमी खंडपीठ पर केंद्रीय मंत्री के बयान से भड़के वकीलों ने लगाए नारे
केन्द्रीय कानून राज्य मंत्री एसपीएस बघेल के पश्चिमी खंडपीठ के बारे में दिए बयान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं ने पूर्व संयुक्त सचिव प्रशासन संतोष कुमार मिश्र के नेतृत्व में केन्द्रीय कानून राज्य मंत्री एसपीएस बघेल के पश्चिमी खंडपीठ के बारे में दिए बयान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। अधिवक्ताओं ने कहा कि उच्च न्यायालय के गौरवशाली इतिहास व अस्मिता से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। अधिवक्ताओं ने मंत्री के बयान की भर्त्सना की है।

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खंडपीठ स्थापित करने का दिया था आश्वासन

उल्लेखनीय है कि मंत्री ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करने का आश्वासन दिया है। उनके इस बयान का वकीलों ने विरोध किया है। आंबेडकर चौराहे पर विरोध प्रदर्शन करने वालों में अनुज मिश्र, ॠतेश श्रीवास्तव, सुभाष यादव, विवेक पाल, विश्वनाथ मिश्र, अमरेंद्र राय, अमरेंदु सिंह, हरिमोहन केसरवानी, केके यादव, अनूप सिंह, कमल नारायण सिंह, अवधेश यादव, जनार्दन यादव, विनय मिश्रा, निखिल चंद्र उपाध्याय, अतुल दुबे आदि सैकड़ों अधिवक्ता शामिल थे।

​​​​​बिना सुनवाई के पारित श्रम अदालत का अवार्ड रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई का अवसर दिए बगैर नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध श्रम अदालत आगरा द्वारा 29 मई 2021 को जारी अवार्ड को रद्द कर दिया है और साक्ष्य के साथ नये सिरे से केस दायर करने तथा श्रम अदालत को नियमानुसार निर्णीत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने याची कंपनी को आदेश दिया है कि वह श्रमिक को 50 हजार रूपये का भुगतान छह हफ्ते में करे। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने वरूण वेवरेजेज लिमिटेड कंपनी की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।

याचिका पर अधिवक्ता सुनील कुमार त्रिपाठी ने बहस की। इनका कहना था कि श्रम अदालत ने कंपनी का पक्ष सुने बगैर श्रमिक को बकाया वेतन भुगतान के साथ बहाली करने का अवार्ड दिया है जबकि श्रमिक के खिलाफ हत्या का केस दर्ज था। उसने अपराध छिपाकर नौकरी प्राप्त की। जब उसे आजीवन कारावास की सजा मिली तो याची को पता चला। जिससे सेवायोजक का श्रमिक पर से विश्वास उठ गया है, इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया गया। हाई कोर्ट ने प्रकरण को नये सिरे से साक्ष्यों पर विचार कर दोनों पक्षों को सुनकर तय करने का निर्देश दिया है।


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