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इलाहाबाद हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी- फर्जी मार्कशीट बनाने वाले शिक्षा पद्धति को बना रहे पंगु

हाई कोर्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वालों के रैकेट में बिचौलियों मास्टरमाइंड व लाभार्थियों की लंबी चेन है। इसकी जड़ों तक जाने के लिए जांच जरूरी है। ऐसे मामलों में जांच के लिए कभी-कभी कस्टडी जरूरी हो जाती है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 11 Jun 2021 07:30 PM (IST)Updated: Fri, 11 Jun 2021 07:32 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी- फर्जी मार्कशीट बनाने वाले शिक्षा पद्धति को बना रहे पंगु
फर्जी मार्कशीट से 11 वर्ष से नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर 11 वर्ष से प्राथमिक विद्यालय में नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वाले रैकेट सामाजिक ढांचे को पंगु बना रहे हैं। इसके जरिये शिक्षा पद्धति की जड़ों को खोखला करके नुकसान पहुंचा रहे हैं।

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इस टिप्पणी के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फर्जी मार्कशीट से 11 वर्ष से नौकरी कर रहे सहायक अध्यापक की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने कहा कि याची कोर्ट में समर्पण करके विवेचना में सहयोग करे। फर्जी मार्कशीट को लेकर याची के खिलाफ थाना अहमदगढ़, बुलंदशहर में एफआइआर दर्ज कराई गई है।

आरोप है कि वह आगरा विश्वविद्यालय से बीएड की फर्जी मार्कशीट के आधार पर अध्यापक नियुक्त हुआ। वर्ष 2009 से विद्यालय में पढ़ा रहा था। याची ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अग्रिम जमानत की मांग की थी। याची के अधिवक्ता का कहना था कि इस मार्कशीट को पाने में उसका कोई दोष नहीं है। उसे नहीं मालूम था कि उसे फर्जी मार्कशीट दी गई है।

याची की अग्रिम जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता विनोद कांत का कहना था कि जांच में पता चला है कि आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेजों ने 2005 में गलत ढंग से बीएड की फर्जी डिग्री व मार्कशीट बांटी है। उसी वर्ष की डिग्री के आधार पर आरोपित नियुक्त हुआ। वह यह नहीं कह सकता कि उसे फर्जी मार्कशीट का ज्ञान नहीं था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट बनाने वालों के रैकेट में बिचौलियों, मास्टरमाइंड व लाभाॢथयों की लंबी चेन है। इसकी जड़ों तक जाने के लिए जांच जरूरी है। ऐसे मामलों में जांच के लिए कभी-कभी कस्टडी जरूरी हो जाती है।


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