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नाबालिग को मिली सजा के आधार पर उसे सरकारी सेवा के लिए अयोग्य ठहराना अनुचित : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग को आपराधिक मामले में मिली सजा उसके भविष्य की राह में रोड़ा नहीं बन सकती है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 10 Apr 2020 07:58 PM (IST)Updated: Fri, 10 Apr 2020 07:59 PM (IST)
नाबालिग को मिली सजा के आधार पर उसे सरकारी सेवा के लिए अयोग्य ठहराना अनुचित : हाईकोर्ट
नाबालिग को मिली सजा के आधार पर उसे सरकारी सेवा के लिए अयोग्य ठहराना अनुचित : हाईकोर्ट

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नाबालिग को आपराधिक मामले में मिली सजा उसके भविष्य की राह में रोड़ा नहीं बन सकती है। नाबालिग को मिली सजा के आधार पर उसको सरकारी सेवा में नियुक्ति के लिए अयोग्य ठहराना अनुचित है। कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों के मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की मंशा एकदम साफ है कि नाबालिग को मिली सजा उसकी अयोग्यता नहीं मानी जाएगी।

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मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति समित गोपाल की पीठ ने कांस्टेबल भर्ती 2015 के अभ्यर्थी शिवम मौर्य की नियुक्ति इस आधार पर निरस्त करने के आदेश को रद कर दिया है। कोर्ट ने उसे 30 दिन के भीतर सेवा में वापस लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने एकलपीठ के याचिका खारिज करने के आदेश के खिलाफ विशेष अपील पर अपना निर्णय 24 फरवरी को सुरक्षित कर लिया था। खंडपीठ ने इस मामले में एकल न्याय पीठ के पांच मार्च 2018 के आदेश को रद कर दिया है।

दरअसल, अभ्यर्थी शिवम मौर्य ने सिपाही भर्ती 2015 के लिए आवेदन किया था। वह लिखित परीक्षा, शारीरिक दक्षता परीक्षा और मेडिकल परीक्षण में सफल रहा। प्रशिक्षण के लिए उसे देवरिया भेज दिया गया। दस्तावेजों के सत्यापन के साथ दाखिल हलफनामे में उसकी ओर से कहा कि वह किसी आपराधिक मामले में लिप्त नहीं रहा है। न ही उस पर कोई मुकदमा दर्ज है, लेकिन जांच में पता चला कि मारपीट, गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप में उसके खिलाफ 28 जून, 2013 को प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इसमें उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने एक साल की सजा और 35 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था। हलफनामे में गलत जानकारी देने के आधार पर उसकी नियुक्ति निरस्त कर उसे सेवा से बाहर कर दिया गया। इस आदेश को उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

एकल न्याय पीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि याची ने मुकदमा दर्ज होने की जानकारी छिपाई है, इसलिए उसे राहत नहीं दी जा सकती है। अपील पर सुनवाई करते हुए खंड पीठ ने कहा कि घटना के समय याची मात्र 16 साल का था। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि नाबालिग को दी गई सजा की वजह से उसके जीवन में दुष्परिणाम भुगतना नहीं पड़ेगा, इसलिए सजा संबंधी दस्तावेज एक निश्चित समय पर समाप्त कर दिए जाते हैं।

कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में कानून की मंशा साफ है कि नाबालिग को मिली सजा उसके जीवन निर्वाह में कभी आड़े न आए। उसे मिली सजा उसकी अयोग्यता नहीं मानी जाएगी, इसलिए सजा मिलने का तथ्य छुपाए जाने का कोई अर्थ नहीं है। संबंधित अधिकारी यह समझने में नाकाम रहे कि याची जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों का लाभ पाने का अधिकारी है।


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