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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- डीएम को अधिग्रहीत भूमि मुआवजे के पुनर्निधारण का अधिकार नहीं

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक बार अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे का निर्धारण होने के बाद जिलाधिकारी को मुआवजे के पुनर्निधारण का अधिकार नहीं है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 15 May 2020 08:00 PM (IST)Updated: Fri, 15 May 2020 08:00 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- डीएम को अधिग्रहीत भूमि मुआवजे के पुनर्निधारण का अधिकार नहीं
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- डीएम को अधिग्रहीत भूमि मुआवजे के पुनर्निधारण का अधिकार नहीं

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि एक बार अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे का निर्धारण होने के बाद जिलाधिकारी को मुआवजे के पुनर्निधारण का अधिकार नहीं है। वह केवल लिपिकीय त्रुटियों को ही सुधार सकते हैं। कोर्ट ने अधिनियम की धारा 3जी (5) के तहत विवाद को पंचाट (आर्बीट्रेशन) के समक्ष हल करने के लिए ले जाने का आदेश दिया है और निर्णय होने तक जमीन की यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति बीके नारायण व न्यायमूर्ति आरएन तिलहरी की खंडपीठ ने कौशांबी जिला के सिराथू तहसील निवासी जयंती पांडेय, रेवती, रामबहादुर त्रिपाठी सीताराम आदि की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने पूर्व में 5500 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से तय मुआवजे को 780 रुपये प्रति वर्ग मीटर निर्धारित करने के जिलाधिकारी के आदेशों को रद कर दिया है।

गौरतलब है कि सिराथू तहसील के गांव ककोरा, नौरिया करैती व कसिया की किसानों की भूमि राजमार्ग चौड़ीकरण के लिए अधिगृहीत की गयी। एक बार तय मुआवजे को घटा दिया गया, जिसे कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि जिलाधिकारी को मुआवजा कम करने का अधिकार नहीं है। यदि कोई असंतुष्ट हैं तो मामले को पंचाट के समक्ष ले जा सकता है। वहीं, नेशनल हाइवे प्राधिकरण का कहना था कि पहले गलती से कृषि भूमि का मुआवजा हेक्टेयर के बजाय वर्ग मीटर की दर से तय कर लिया गया, जिसे दुरुस्त किया गया है। पुनर्निधारण नहीं किया गया है। कोर्ट ने इस तर्क को सही नहीं माना और जारी अवार्ड रद कर दिया है।


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