Allahabad High Court ने कहा- धारा 482 की अंतर्निहित शक्तियों के तहत तथ्य पर विचार नहीं कर सकती अदालत
सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि याची समयावधि में समर्पण कर जमानत अर्जी नहीं दाखिल करता तो पुलिस उत्पीड़नात्मक कार्यवाही कर सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने लोहा मंडी आगरा के निरंकार चौधरी की याचिका पर दिया है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि तथ्य के मुद्दे पर धारा-482 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत विचार नहीं की जा सकती। प्रथम दृष्टया अपराध कारित होता हो तो कोर्ट चार्जशीट पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने केस कार्यवाही निरस्त करने की मांग अस्वीकार कर दी है। साथ ही कहा कि याची यदि 45 दिन में कोर्ट में समर्पण कर जमानत अर्जी दाखिल करता है तो अमरावती केस के निर्देशानुसार निस्तारित की जाय। तब तक उत्पीड़नात्मक कार्यवाही पर अदालत ने रोक लगा दी है।
समर्पण कर जमानत अर्जी नहीं दाखिल करता तो पुलिस कर सकती है उत्पीड़नात्मक कार्यवाही
सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि याची समयावधि में समर्पण कर जमानत अर्जी नहीं दाखिल करता तो पुलिस उत्पीड़नात्मक कार्यवाही कर सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने लोहा मंडी आगरा के निरंकार चौधरी की याचिका पर दिया है। याची के खिलाफ परक्राम्य विलेख अधिनियम की धारा-138 चेक अनादर के आरोप में अतिरिक्त कोर्ट आगरा के समक्ष इस्तगासा दायर किया गया है। इस पर संज्ञान लेकर कोर्ट सम्मन जारी किया है।
मुकदमे की कार्यवाही को रद करने की मांग
याचिका में मुकदमे की कार्यवाही को रद करने की मांग की गई थी। कहा गया कि याची के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता केवल परेशान करने के लिए केस दायर किया गया है। अपने पक्ष में दस्तावेजी साक्ष्य दिखाये। कोर्ट ने कहा याचिका में इन दस्तावेजों का परीक्षण नहीं किया जा सकता।ये साक्ष्य हैं। कोर्ट ने पत्रावली पर उपलब्ध दस्तावेजों का परिशीलन करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध कारित होता प्रतीत होता है। इसलिए हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।