इलाहाबाद हाई कोर्ट: वकालत से पहले क्या करते थे, अदालत के सवाल पर जवाब नहीं मिला, याचिका खारिज
जनहित याचिका दाखिल कर महाधिवक्ता दफ्तर के इलेक्ट्रिफिकेशन को लेकर बिजली विभाग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए गए थे। कहा गया बिजली विभाग ने महाधिवक्ता दफ्तर को स्वतंत्र फीडर से बिजली देने की बजाय हाईकोर्ट के फीडर से ही सप्लाई दे दी।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महाधिवक्ता कार्यालय (आंबेडकर भवन) के इलेक्ट्रिफिकेशन को लेकर दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में कार्यालय के लिए चीफ इंजीनियर प्रयागराज को उपनिदेशक विद्युत सुरक्षा से प्राविधिक प्रावधान के तहत क्लियरेंस (एनओसी) लेने की मांग की गई है।
यह आदेश न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुख्य न्यायमूर्ति राजीव बिंदल व न्यायमूर्ति जेजे मुनीर खंडपीठ ने अधिवक्ता अरुण कुमार मिश्रा की जनहित याचिका पर विद्युत विभाग के स्थाई अधिवक्ता नरेंद्र कुमार तिवारी को सुनकर दिया है।
वकालत से पहले क्या करते थे, जवाब नही मिला तो याचिका खारिज
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने जब याची से सवाल पूछे तो उसने बताया कि वह अधिवक्ता है। उसे वकालत का लाइसेंस वर्ष 2019 में मिला है। न्यायालय ने जब उससे पूछा कि इससे पहले वह क्या करते थे तो याची संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। इसे देखते हुए न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।
जनहित याचिका में बिजली विभाग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप
जनहित याचिका दाखिल कर महाधिवक्ता दफ्तर के इलेक्ट्रिफिकेशन को लेकर बिजली विभाग के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए गए थे। कहा गया बिजली विभाग ने महाधिवक्ता दफ्तर को स्वतंत्र फीडर से बिजली देने की बजाय हाईकोर्ट के फीडर से ही सप्लाई दे दी। इसी प्रकार तीन हजार किलोवाट के स्वीकृत लोड के सापेक्ष 630 किलोवाट का ट्रांसफार्मर लगाया गया है। महाधिवक्ता दफ्तर को बिजली विभाग से एनओसी भी नहीं प्राप्त है।