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इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पति कोमा में है, तो पत्नी को सौंपे जाएं सारे अधिकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले में मानवीय चेहरा उजागर हुआ है। कोर्ट ने कोई कानून न होने के बावजूद पत्नी को पति का संरक्षक नियुक्त कर दिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 15 Jun 2020 06:47 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jun 2020 01:15 AM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पति कोमा में है, तो पत्नी को सौंपे जाएं सारे अधिकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, पति कोमा में है, तो पत्नी को सौंपे जाएं सारे अधिकार

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले में मानवीय चेहरा उजागर हुआ है। कोर्ट ने कोई कानून न होने के बावजूद पत्नी को पति का संरक्षक नियुक्त कर दिया है। पति करीब डेढ़ साल से कोमा में है, उनका इलाज कराने के लिए पत्नी कर्ज ले रही है। स्थिति ज्यादा बिगड़ने पर पत्नी ने पति के बैंक खातों के संचालन व उनकी संपत्ति बेचने का अधिकार मांगने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने उनकी फरियाद सुनी, लेकिन उसके अनुरूप कोई कानून नहीं मिला। इस पर अनुच्छेद 226 के अंतर्निहित अधिकारों का प्रयोग करके याची को बड़ी राहत दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता तथा न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की खंडपीठ ने प्रयागराज की उमा मित्तल व अन्य की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। 

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हाई कोर्ट ने कहा कि याची बिना महानिबंधक की पूर्व अनुमति के अचल संपत्ति नहीं बेच सकेगी, लेकिन मकान खाली कराने या किराये पर उठाने की खुली छूट रहेगी। कोर्ट ने कहा कि वह पति की संपत्ति से इलाज कराने के अलावा अपनी दो बेटियों की शादी का खर्च भी कर सकेंगी। उसे पति की तरफ से निर्णय लेने व हस्ताक्षर करने का अधिकार होगा।

हाई कोर्ट ने अपने मार्मिक फैसले में कहा कि परिवार का पालन करने वाला डेढ़ साल से कोमा में है। पत्नी रिश्तेदारों व मित्रों से उधार लेकर पति का इलाज करा रही। पति के बैंक में पैसे व संपत्ति होने के बावजूद पत्नी कानूनी अड़चन के चलते उनका उपयोग नहीं कर पा रही है। उसने बैंक खाते के संचालन व संपत्ति बेचने के अधिकार के लिए कोर्ट की शरण ली है। याची की एक शादीशुदा सहित तीनों बेटियों व बेटे ने भी मां को पिता का संरक्षक नियुक्त करने की मांग की है।

केंद्र सरकार को कानून बनाने की संस्तुति की : हाई कोर्ट ने कहा कि नाबालिग व अक्षम लोगों का संरक्षक नियुक्त करने का कानून है, लेकिन लंबे समय तक कोमा में पड़े मरीज का संरक्षक नियुक्त करने का कोई कानून नहीं है, इसलिए कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस संबंध में कानून बनाने की संस्तुति भी की है।

हर छह माह में देनी होगी रिपोर्ट : हाई कोर्ट ने सीएमओ प्रयागराज के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम की मेडिकल रिपोर्ट देखी। इसमें कोमा की स्थिति की पुष्टि की गई है। कोर्ट ने कहा कि जब तक याची के पति स्वयं कार्य करने लायक नहीं होते, तब तक वह संरक्षक का दायित्व पूरा करेगी। हर छह माह पर मेडिकल की स्थिति व पति की संपत्ति के विनियमन की रिपोर्ट महानिबंधक को करती रहेगी।

यह है पूरा मामला : प्रयागराज जिला के सिविल लाइंस निवासी सुनील कुमार मित्तल 22 दिसंबर, 2018 को अपने घर के बाथरूम में फिसलकर गिर गए। सिर पर चोट लगने के कारण वह बेहोश हो गए। इसके बाद उन्हें होश नहीं आया। याची अपने पति का पहले प्रयागराज में इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा न होने पर उन्हें लखनऊ व दिल्ली लेकर गई। वहां दिमाग का ऑपरेशन करके डॉक्टरों ने वापस घर भेज दिया। क्लाइव रोड, सिविल लाइंस स्थित याची के घर में ही आईसीयू जैसी व्यवस्था करके इलाज हो रहा है। डॉक्टरों ने जीवनभर इलाज चलाने को कहा है। मित्तल की इलाहाबाद शहर में करोड़ों की संपत्ति व व्यापार है। उसके अधिकार की मांग के लिए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी।


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