Allahabad High Court: हनुमान जी पर टिप्पणी मामले में सीएम योगी के खिलाफ मुकदमे की मांग वाली याचिका खारिज
हाईकोर्ट ने हनुमान जी के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी व बयान देने के आरोप पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमे की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। तीन रोज पहले अदालत ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ परिवाद दर्ज किए जाने का आदेश दिए जाने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए खारिज कर दी है। दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए याचिका खारिज कर दी।
उल्लेखनीय है कि निचली अदालत ने याची की परिवाद चलाने की अर्जी को क्षेत्राधिकार के आधार पर खारिज कर दिया था जिसके विरुद्ध यह याचिका दाखिल की गई।
कोर्ट ने कहा निचली अदालत के आदेशों में कोई वैधानिक त्रुटि नहीं है। दोनों आदेश में ठोस निष्कर्ष निकाला गया है। कोर्ट ने कहा याची अधिवक्ता है। उसकी सात सितंबर 2021 की अर्जी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। जिसके लिए कोर्ट ने याची पर पांच हजार रुपए हर्जाना लगाया है। यह आदेश न्यायमूर्ति समित गोपाल ने मऊ जिले के नवल किशोर शर्मा की याचिका पर दिया है।
2018 में अलवर में दिए भाषण को बनाया आधार
मऊ जिले के नवल किशोर शर्मा ने याचिका में अधीनस्थ अदालतों के आदेशों को चुनौती दी है। राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व एजीए प्रथम एके संड ने याचिका का विरोध किया। याचिका में कहा गया है कि 28 नवंबर 2018 को राजस्थान में अलवर जिले के मालाखेड़ा में चुनावी सभा के दौरा प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बजरंगबली को लेकर जो भाषण दिया, उसे धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने वाला मानते हुए मऊ जिले में परिवाद दाखिल किया गया।
सीएम योगी के खिलाफ परिवाद दर्ज करने के आदेश की थी याचिका में मांग
याचिका में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ आईपीसी की धारा 295ए, 298 ,419, 420 व 501 के तहत परिवाद दर्ज किए जाने का आदेश देने की मांग की गई थी जिसे स्पेशल कोर्ट एमपी एमएलए ने 11 मार्च 2022 को क्षेत्राधिकार के आधार पर खारिज कर दिया।
उस आदेश के विरुद्ध सेशन अदालत में क्रिमिनल रिवीजन दाखिल हुआ। सेशन कोर्ट ने 26 अप्रैल 2022 को उस पर हस्तक्षेप से इन्कार करते हुए खारिज कर दिया। इन दोनों आदेशों को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल की गई थी जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।