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Allahabad High Court: ​​​​​शिक्षा सत्र के लिए नियुक्ति वाले अध्यापकों को भर्ती में वरीयता देने से इन्कार

नियमित भर्ती में वरीयता देने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने कहा है कि इस धारा में प्रबंध समिति को केवल शिक्षा सत्र के लिए नियुक्ति का अधिकार है। वह पिछली रिक्तियों पर नियुक्ति नहीं कर सकता जो बोर्ड को अधिसूचित की जा चुकी है।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 23 Sep 2021 12:48 PM (IST)Updated: Thu, 23 Sep 2021 01:20 PM (IST)
Allahabad High Court: ​​​​​शिक्षा सत्र के लिए नियुक्ति वाले अध्यापकों को भर्ती में वरीयता देने से इन्कार
खाली पद पर नियुक्त अध्यापक को बोर्ड की नियमित भर्ती में वरीयता देने की मांग में दाखिल याचिका खारिज

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम की धारा 16 ई(11) के तहत प्रबंध समिति द्वारा खाली पद पर नियुक्त अध्यापक को बोर्ड की नियमित भर्ती में वरीयता देने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी है। हाई कोर्ट ने कहा है कि इस धारा में प्रबंध समिति को केवल शिक्षा सत्र के लिए नियुक्ति का अधिकार है। वह पिछली रिक्तियों पर नियुक्ति नहीं कर सकता जो बोर्ड को अधिसूचित की जा चुकी है।

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वरीयता देने से इंकार कर याचिका खारिज

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने आशुतोष कुमार मिश्र व तीन अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने प्रतिवाद किया। याची का कहना था कि वह 2018 से कार्यरत हैं। वेतन नहीं दिया गया तो याचिका दायर की। कोर्ट ने डीआइओएस बलिया को निर्णय लेने का निर्देश दिया। पालन नहीं किया तो अवमानना याचिका पर भी निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है। इसी बीच बोर्ड ने भर्ती निकाली। याचीगण ने भी आवेदन दिया है। याचिका दायर कर इस भर्ती में अध्यापन अनुभव के आधार पर वरीयता देने की मांग की गई थी। कोर्ट ने वरीयता देने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।

बिजली विभाग के अधिकारियों को राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजली विभाग के कनिष्ठ अभियंता, एसडीओ और ड्राइवर के विरुद्ध एससी एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमे में उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है और शिकायतकर्ता व सरकार से जवाब मांगा है। याचिका की सुनवाई 28 अक्टूबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने माधव कुमार द्विवेदी व अन्य की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता शशि भूषण मिश्र ने बहस की। इनका कहना है कि आपराधिक केस पेशबंदी में कायम किया गया है।

याचीगण ने बिजली चोरी के आरोप में शिकायतकर्ता ममता देवी के पति के खिलाफ भदोही थाने में एफआइआर दर्ज कराई। पेशबंदी में शिकायतकर्ता ने ज्ञानपुर थाने में घूस मांगने के आरोप में एफआइआर दर्ज करा दी। इस केस में विवेचनाधिकारी ने कोर्ट में रिपोर्ट दी कि याचीगण सरकारी ड्यूटी का कार्य कर रहे थे, कोई अपराध नहीं बनता। इस रिपोर्ट की अनदेखी कर अपर सत्र न्यायालय ने सम्मन जारी किया है जिसे याचिका में चुनौती दी गई है। शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि केवल घूस मांगने पर ही नहीं, जाति सूचक टिप्पणी करने का आरोप है। इस पर कोर्ट ने विपक्षियों से जवाब मांगा है और तब तक उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है।

जिसने की मुक्ति की मांग, उसी ने किया हाजिर

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति द्वारा पत्नी को कोर्ट में पेश करने पर पत्नी के अपने पिता की अवैध निरुद्धि में न मानते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज कर दी है।

कोर्ट ने कहा कि अवैध निरुद्धि न होने के कारण याचिका पोषणीय नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने गाजीपुर की दीपमाला गिरी की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर दिया है। दीपमाला गिरी ने धर्मेंद्र भारती से शादी कर ली। दोनों बालिग है। याचिका दायर कर धर्मेंद्र भारती ने अपनी पत्नी दीपमाला गिरी को उनके पिता अंजनी कुमार गिरी की अवैध निरुद्धि से मुक्त कराने की गुहार लगाई। कोर्ट ने पिता को नोटिस जारी कर याची को हाजिर करने का निर्देश दिया और याची महिला अपने पति के साथ कोर्ट में पेश हुई।

कोर्ट ने कहा कि याची बालिग होने वह कहीं भी जाने के लिए स्वतंत्र हैं।


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