इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा- सैनिक सेवा में रहते सिविल पदों के लिए आवेदन कर सकता है या नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा है कि क्या कोई एक्स सर्विसमैन सेवा में रहते हुए सिविल पदों के आवेदन कर सकता है? कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय भारत सरकार और निदेशक पुनर्वास के साथ ही राज्य सरकार को भी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा है कि क्या कोई एक्स सर्विसमैन (भूतपूर्व सैनिक) सेवा में रहते हुए सिविल पदों के आवेदन कर सकता है? इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार के क्या निर्देश हैं? कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय भारत सरकार और निदेशक पुनर्वास के साथ ही राज्य सरकार को भी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। यह आदेश सुधीर सिंह व अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति अजय भनोट ने दिया है। अगली सुनवाई चार नवंबर को होगी।
याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि याचीगण ने एक्स सर्विस मैन कोटे के तहत ग्राम विकास अधिकारी के पद के लिए 2016 में आवेदन किया था। परीक्षा में सफल होने के बाद उन्होंने फरवरी 2019 में उक्त पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। इसके बाद कमिश्नर ने आदेश जारी करके याचीगण को सुनवाई का मौका न देते हुए पद से बर्खास्त कर दिया। मई 2019 में याचीगण को सेवा से यह कहते हुए बाहर कर दिया गया कि ग्राम विकास अधिकारी के पद के लिए आवेदन की अंतिम तारीख पांच अक्टूबर 2016 को वह सेना में कार्यरत थे। बिना सेवानिवृत्त हुए आवेदन के कारण उनकी नियुक्ति अवैध है।
अधिवक्ता का कहना था कि सेना के ऐसे कई आदेश हैं जिनके अनुसार सैन्य कर्मी सेवानिवृत्त होने से एक वर्ष पूर्व सिविल पदों के लिए आवेदन कर सकता है। राज्य सरकार का कहना था कि सेना के नियम और आदेश राज्य सरकार पर लागू नहीं होंगे। याची की ओर से यह भी दलील दी गई कि राज्य सरकार के कुछ विभाग सेवानिवृत्ति से एक वर्ष पूर्व का आवेदन स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ विभाग इसे नहीं मानते हैं।
कोर्ट ने केंद्र और राज्य को मामले में स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश देते हुए कहा कि राज्य सरकार से यह नहीं भूलना चाहिए कि एक्स सर्विस मैन को यह लाभ इसलिए भी दिया जाता है कि वह समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। भूतपूर्व सैनिक सेना के कड़े अनुशासन में प्रशिक्षित होते हैं। राज्य सरकार उनकी सेवाओं का लाभ ले सकती है।