Allahabad Central University : पूरब का ऑक्सफोर्ड 10 माह से कर रहा स्थायी कुलपति का इंतजार
15 जनवरी को प्रो. साहू के सेवानिवृत्त होने के बाद प्रो. आरआर तिवारी को कुर्सी का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद मंत्रालय ने विज्ञापन जारी कर आवेदन मांगे। नियत तिथि 21 फरवरी तक देशभर से 125 शिक्षाविदों ने आवेदन किया। इनमें नौ आवेदन इविवि से जुड़े शिक्षकों के हैं।
प्रयागराज,जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) को 10 महीने से स्थायी कुलपति का इंतजार है। इसके लिए सबकी निगाहें मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन की तरफ टिकी हैं। फिलहाल कार्यवाहक कुलपति के सहारे व्यवस्था चल रही है। इस कारण इविवि की आर्थिक, शैक्षणिक व्यवस्था सवालों में है। कई ऐसे जरूरी काम हैं, जिसके लिए स्थायी कुलपति चाहिए पर कुलपति का मसला अधर में है।
प्रोफेसर हांगलू ने कुलपति पद से दिया था इस्तीफा
वर्ष 2005 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद माना जा रहा था कि पूरब का ऑक्सफोर्ड यानी इलाहाबाद विश्वविद्यालय नए मुकाम को छुएगा पर ऐसा नहीं हुआ। अलबत्ता विवाद जरूर गहरा गया है। नियुक्ति के बाद से ही सुर्खियों में रहे प्रोफेसर रतन लाल हांगलू ने 31 दिसंबर 2019 को पद से इस्तीफा दे दिया था। एक जनवरी 2020 को प्रो. केएस मिश्र ने बतौर कार्यवाहक कुलपति इविवि की कमान संभाली। उनके रिटायर होने के बाद मंत्रालय ने किसी वरिष्ठ प्रोफेसर को यह जिम्मा सौंपने का आदेश दिया।
प्रो. साहू एक दिन के बने थे कार्यवाहक कुलपति
नाटकीय ढंग से 14 जनवरी की देर शाम प्रो. पीके साहू को एक दिन का कार्यवाहक कुलपति बनाया गया। 15 जनवरी को प्रो. साहू के सेवानिवृत्त होने के बाद प्रो. आरआर तिवारी को कुर्सी का दायित्व सौंपा गया। इसके बाद मंत्रालय ने विज्ञापन जारी कर स्थायी कुलपति के लिए आवेदन मांगे। नियत तिथि 21 फरवरी तक देशभर से 125 शिक्षाविदों ने आवेदन किया। इनमें नौ आवेदन इविवि से जुड़े शिक्षकों के हैं।
खाली पड़े है शिक्षकों के पद
स्थायी कुलपति न होने से इविवि के खाली पड़े शिक्षक के पद भी नहीं भरे जा पा रहे हैं। हालात यह है कि पढ़ाई के लिए शोध छात्रों का सहारा लेना पड़ रहा है। अब तक यह जिम्मा अतिथि प्रवक्ताओं के पास था। उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। नए सत्र में कोरोना के चलते ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। ऐसे में नई नियुक्ति भी नहीं की जा सकी।