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Kumbh mela 2019 : अरे! यहां तो राष्ट्रपति शासन है, आइए जानें कारण

महानिर्वाणी अखाड़े की परंपरा और व्‍यवस्‍था निराली है। यहां लोकतंत्र की तरह व्‍यवस्‍था है लेकिन कुंभ में सभी अधिकार अध्‍यक्ष के हाथ में रहता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 09:07 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jan 2019 10:55 AM (IST)
Kumbh mela 2019 : अरे! यहां तो राष्ट्रपति शासन है, आइए जानें कारण
Kumbh mela 2019 : अरे! यहां तो राष्ट्रपति शासन है, आइए जानें कारण

आशीष भटनागर, कुंभ नगर : सनातन धर्म की पताका फहराने, वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में शतकों से जुटे अखाड़ों की परंपरा और व्यवस्था भी निराली है। प्रमुख दशनामी अखाड़ों में से एक महानिर्वाणी अखाड़े में संसद जैसी व्यवस्था, लोकतंत्र जैसी संरचना और प्रक्रिया है। श्रीपंच से लेकर कोठारी तक भारी भरकम मंत्रिमंडल अखाड़े की सभी व्यवस्थाओं का संपादन करता है। वहीं कुंभ क्षेत्र में पहुंचते ही मंत्रिमंडल भंग हो जाता है और समस्त अधिकार अध्यक्ष के हाथ में आ जाते हैं। 52 मढ़ी वाली सेना को आम भाषा में अखाड़े की बटालियन भी माना जा सकता है।

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महानिर्वाणी अखाड़े में समस्त व्यवस्था लांकतांत्रिक

भगवान कपिल महामुनि को अपना आराध्य मानने वाले महानिर्वाणी अखाड़े की समस्त व्यवस्था देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की भांति ही चलती है। श्रीपंच के नेतृत्व में एक प्रबंधन समिति होती है, जिसमें आठ श्रीमहंत, शाखाओं की संख्या के हिसाब से थानापति और कोठारी। थानापति अपनी-अपनी शाखाओं की व्यवस्था देखते हैं। शाखा में होने वाले विवाद आदि भी वही निपटाते हैं और उसकी रिपोर्ट श्रीपंच को पहुंचाते हैं। कोठारी रसद और वित्त मंत्री की भूमिका निभाते हैं।

समिति महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय लेती है

महंत यमुना पुरी बताते हैं कि यह समिति ही अखाड़े की संसद है और यही सुप्रीम कोर्ट है। यही समिति महामंडलेश्वर बनाने का भी निर्णय लेती है। जिसका नाम यह समिति तय करती है, उसे आचार्य महामंडलेश्वर दीक्षा देकर महामंडलेश्वर बनाते हैं। वर्तमान में स्वामी विशोकनंद भारती आचार्य महामंडलेश्वर हैं। महामंडलेश्वर मंडली में रहकर सनातन धर्म और वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार करते हैं।

52 मढ़ी हैं अखाड़े में

विक्रम संवत 805 में बिहार (वर्तमान झारखंड) के गढ़ गोलकुंडा के सिधेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में स्थापित इस अखाड़े में 52 मढ़ी हैं। इनमें 27 गिरियों की, 16 पुरियों, 4 भारती, 4 वन पर्वत, और एक तिब्बत स्थित लामा। यह सनातन धर्म की रक्षा के लिए सन्नद्ध 52 बटालियन वाली सेना जैसी है, जिसका देवता, तीर्थ, क्षेत्र, दिशा, भाले, संप्रदाय, गोत्र, ब्रह्मसूत्र, वेद, शाखा सब अलग-अलग होते हैं।

कुंभ के बाद संतों का काशी प्रवास भी

कुंभ के दौरान महानिर्वाणी अखाड़ा में निवास करने वाला संत समाज कुंभ समाप्ति पर काशी प्रवास करता है। एक माह रहकर वहां पंचकोसीय और अंतरग्रहीय परिक्रमा करते हैं। महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ का दर्शन-पूजन करते हैं। उसके बाद वहां से अपने निर्धारित क्षेत्र के लिए प्रस्थान कर जाते हैं।

कहते हैं महंत यमुना पुरी

महंत यमुना पुरी कहते हैं कि स्वतंत्र भारत में शासन की जो व्यवस्था बनाई गई, वह हमारे अखाड़ों से ही प्रेरित है। पदलोलुपता में कोई इस व्यवस्था को स्कॉटलैंड से लाई बताता है तो कोई ब्रिटेन से लाई। यह व्यवस्था हमारे अखाड़े में 1200 वर्षों से चली आ रही है।


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