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मुगलकाल में 23 बार काटकर जलाया गया फिर भी 'अक्षय' है अक्षयवट

सनातन धर्म में अक्षयवट सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष है। इसका अस्तित्व मिटाने के लिए मुगलकाल में काफी प्रयत्न हुआ हालांकि कोशिशें नाकाम ही साबित हुईं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 12:10 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 12:10 PM (IST)
मुगलकाल में 23 बार काटकर जलाया गया फिर भी 'अक्षय' है अक्षयवट
मुगलकाल में 23 बार काटकर जलाया गया फिर भी 'अक्षय' है अक्षयवट

प्रयागराज : संगम तट से यमुना किनारे बने किला की ओर देखने पर डालियों से घना वृक्ष नजर आता है। नजदीक जाने पर किला की विशाल दीवार के नीचे उसकी डालियां लटकती मिलती हैं, जिसकी पत्तियां हर किसी को आकर्षित करती हैं। यही वृक्ष अक्षयवट है। यह अनादिकाल से यमुना तट पर स्थित है। इसका अस्तित्व समाप्त करने के लिए समय-समय पर अनेक तरीके अपनाए गए, उसे काटकर दर्जनों बार जलाया गया, लेकिन ऐसा करने वालों को सदैव असफलता मिली। काटने व जलाने के कुछ माह बाद अक्षयवट पुन: पुराने स्वरूप में आ जाता। यही खासियत उसके महत्व को साबित करती है।

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पुराणों में बखानी गई महिमा :

इसकी महिमा पुराणों में बखानी गई है। पौराणिक मान्यता है कि धरती पर प्रलय आने पर भी अक्षयवट को क्षति नहीं पहुंची। प्रयाग महात्म्य, पद्म व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह माना जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्म में यह सबसे पवित्र व पूज्यनीय वृक्ष है, जिसका अस्तित्व मिटाने के लिए मुगलकाल में काफी प्रयत्न हुआ।

 सनातन धर्म विद्वान ओंकारनाथ त्रिपाठी बताते हैं कि अकबर ने यमुना किनारे किला बनवाने के लिए 1574 में नींव रखी तो अक्षयवट का स्वरूप काफी विराट था, उसके आस-पास सर्पों एवं अनेक जीव-जंतुओं का वास था। इसके चलते अक्षयवट को काटने का निर्णय हुआ। उसे जड़ से काटकर उसमें जलता तावा रखा गया। यह प्रक्रिया 23 बार की गई, लेकिन अक्षयवट को नष्ट करने में विफल रहे।

 काटने व जलाने के चंद माह बाद वह पुन: पुराने स्वरूप में आ जाता। इससे हारकर अक्षयवट स्थल को बंद करने का निर्णय हुआ, जिसके लिए विशाल घेरा बनाया गया, उसमें किसी को जाने की अनुमति नहीं थी। तब से अक्षयवट कैद हैं, सनातन धर्मावलंबी चाहकर भी उसका दर्शन करने से वंचित हैं।

कुंभ से पहले खुले अक्षयवट :

ओंकारनाथ त्रिपाठी अक्षयवट को दर्शन-पूजन के लिए खोलने की मांग करते हैं। कहते हैं कि मुगलकाल से हिंदू इसका दर्शन करने से वंचित हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि देश को आजादी मिलने के बाद भी इसका दर्शन दुर्लभ है। इसे आम श्रद्धालुओं के दर्शन को खोलने के लिए समय-समय पर मांग उठती रही है। वहां सेना के होने के चलते उसे नहीं खोला गया। सिर्फ चुनिंदा लोग ही अक्षयवट का दर्शन-पूजन कर पाते हैं। अक्षयवट का दर्शन हर व्यक्ति आसानी से कर सके, इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकार कुंभ से पहले अक्षयवट को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले।

अक्षयवट न खुला तो होगा आंदोलन :

प्रयाग धर्म संघ के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल ने अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोलने की मांग की है। कहा कि हिंदुओं का अक्षयवट के दर्शन से वंचित होना दुर्भाग्यपूर्ण है। उसको खोलने के लिए वह केंद्रीय रक्षामंत्री, मुख्यमंत्री के साथ प्रशासनिक अधिकारियों को पत्र लिख चुके हैं। उम्मीद है कि शासन अतिशीघ्र उचित निर्णय लेगा। कुंभ से पहले उसे देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उनका धार्मिक अधिकार है। ऐसा न हुआ तो प्रयाग धर्म संघ आंदोलन को बाध्य होगा। इसमें प्रयाग के समस्त धार्मिक संगठन एवं विद्वतजन शामिल होंगे।


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