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अब प्रयाग में हर खासोआम को हो सकेंगे तीर्थराज के छत्र अक्षयवट के दर्शन

प्रलय और सृष्टि का साक्षी, प्रयाग की पहचान। सनातन धर्म व संस्कृति की धूरी अक्षयवट से श्रद्धालुओं की दूरी आखिरकार खत्म हो गई।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 10:17 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 10:18 PM (IST)
अब प्रयाग में हर खासोआम को हो सकेंगे तीर्थराज के छत्र अक्षयवट के दर्शन
अब प्रयाग में हर खासोआम को हो सकेंगे तीर्थराज के छत्र अक्षयवट के दर्शन

जेएनएन, प्रयागराज। प्रलय और सृष्टि का साक्षी, प्रयाग की पहचान। सनातन धर्म व संस्कृति की धूरी अक्षयवट से श्रद्धालुओं की दूरी आखिरकार खत्म हो गई। उल्लेखनीय है कि मुगल शासकों ने तीर्थराज का छत्र माने जाने वाले इस अक्षयवट को खत्म करने के लिए अनेक प्रयत्न किए। कम से कम 23 बार काटकर जलाया गया लेकिन हर बार कुछ दिनों बाद यह पुनः पल्लवित होने लगता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज की महिमा का वर्णन करने के साथ ही कुंभ के दौरान अक्षयवट दर्शन सबके लिए सुलभ होने की घोषणा की।  उन्होंने कहा कि आज जब अर्धकुंभ से पहले मैं यहां आया हूं, आप सभी को, देश के हर जन को एक खुशखबरी भी देना चाहता हूं। इस कुंभ में सभी श्रद्धालु अक्षयवट का दर्शन कर सकेंगे। कई पीढिय़ों से अक्षयवट किले में बंद था। इतना ही नहीं, सरस्वती कूप दर्शन भी संभव हो पाएगा।

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जीवन के प्रति जीवट होने की प्रेरणा

मोदी ने कहा कि अक्षयवट अपनी गहरी जड़ों की वजह से बार-बार पल्लवित होकर हमें भी जीवन के प्रति ऐसा ही जीवट रवैया अपनाने की प्रेरणा देता है। साथ ही बताया कि संबोधन करने के पहले मैंने भी अक्षयवट का दर्शन किया। कुछ देर अक्षयवट के नीचे चबूतरे पर बैठे भी। ओडी किला में बंद अक्षयवट का दर्शन अभी तक सिर्फ रसूखदार लोगों को मिलता था। सेना के अधिकारियों से जिसकी पहचान होती थी, वही अंदर तक पहुंच पाता है। सुरक्षा का हवाला देकर आम श्रद्धालुओं को वहां जाने से रोका जाता था। उल्लेखनीय है कि दैनिक जागरण ने अक्षयवट के दर्शन-पूजन को लेकर हो रहे भेदभाव के खिलाफ दस नवंबर से 'प्रयागराज मांगे अक्षयवट दर्शन ' का अभियान चलाया था। इस समाचारीय अभियान में प्रतिदिन अक्षयवट के धार्मिक, पौराणिक व वैज्ञानिक महत्व पर खबरें प्रकाशित की गईं। साथ ही संत-महात्मा, अधिवक्ता, बुद्धिजीवी, राजनेता, समाजसेवी, शिक्षकों व महिलाओं की अक्षयवट को लेकर भावनाओं को प्रमुखता से उठाया। 

मुगलकाल से बंद अक्षयवट 

अक्षयवट का प्राचीन वृक्ष यमुना तट पर स्थित अकबर के किले में कैद है। मुगल व अंग्रेजों के शासन में अक्षयवट का दर्शन दुर्लभ था। अकबर ने यमुना किनारे किला बनवाने के लिए 1574 में नींव रखी। किला बनने में 42 साल लग गए। नींव रखने के बाद से अक्षयवट के दर्शन-पूजन का सिलसिला बंद कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत में भी अक्षयवट के दर्शन पर पाबंदी थी। अंग्रेजों ने किला को कब्जे में लेकर अपनी छावनी बना ली थी।

 23 बार काटकर जलाया गया 

मुगल शासकों ने अक्षयवट का अस्तित्व समाप्त करने का काफी प्रयत्न किया। हिंदुओं की धार्मिक मान्यता व भावना को चोट पहुंचाने के लिए अक्षयवट को 23 बार काटा व जलाया गया। काटने व जलाने के चंद माह बाद वह पुन: पुराने स्वरूप में आ जाता।

इसलिए है आस्था का केंद्र

धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि रचना से पहले परमपिता ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ किया था। प्रयाग में यज्ञ से सृष्टि की रचना हुई। ब्रह्माजी ने जब प्रयाग में यज्ञ किया था अक्षयवट तब भी यहां मौजूद था। धर्माचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि अक्षयवट पृथ्वी का सबसे प्राचीन वृक्ष है। भागवत पुराण में कहा गया है कि अक्षयवट में भगवान विष्णु बालरूप में शयन करते हैं। यह न सिर्फ प्रयाग बल्कि पूरी धरती के प्रहरी माने जाते हैं। वह बताते हैं कि प्रयाग महात्म्य, पद्म पुराण व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह है।

पद्म पुराण में अक्षयवट तीर्थराज का छत्र 

प्रयाग पीठाधीश्वर जगद्गुरु ओंकारानंद सरस्वती बताते हैं कि पद्म पुराण में अक्षयवट को तीर्थराज प्रयाग का छत्र कहा गया है। अक्षयवट का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। वनवास के लिए निकले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जब प्रयाग में महर्षि भारद्वाज के पास आए तो उन्होंने यमुना तट पर स्थित अक्षयवट की महिमा बताई। इसके बाद श्रीराम, सीता व लक्ष्मण ने अक्षयवट का दर्शन किया था। माता सीता ने अक्षयवट का पूजन कर आशीर्वाद पाने को याचना की थी। रामचरित मानस में वर्णित है-पूजहि माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता।


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