न हो भेदभाव न ही बंदिश, किले में बंद अक्षयवट सबके दर्शनार्थ खुले
किले में कैद अक्षयवट का दर्शन कुंभ श्रद्धालुओं के साथ सभी को सुलभ हो, ऐसी मांग समाज के लोग लगातार कर रहे हैं। दैनिक जागरण ने भी मुहिम चलाई है।
न हो भेदभाव न ही बंदिश, किले में बंद अक्षयवट सबके दर्शनार्थ खुले
प्रयागराज : न कोई भेदभाव हो, न किसी प्रकार की बंदिश हो। किले में बंद अक्षयवट सबके दर्शनार्थ खुलना चाहिए। यह मांग है समाज के अलग-अलग वर्ग के लोगों की। वह चाहते हैं कि अक्षयवट जल्द खुले, हर किसी के लिए दर्शन-पूजन सुलभ हो। यह मुद्दा हर ओर उठने लगा है, प्रबुद्धजन भी सरकार से लगातार मांग कर रहे हैं। हर कोई चाहता है कि किले में बंद अक्षयवट का दर्शन हमेशा के लिए खुले।
पूरी की जाए उम्मीद : रवींद्र
खेल शिक्षक रवींद्र मिश्र अक्षयवट को खोलने की मांग उठा रहे हैं। कहते हैं कि केंद्र व राज्य सरकार इस मुद्दे पर जल्द दखल देखकर ठोस कार्रवाई खुले। अक्षयवट का नियमित दर्शन-पूजन होना चाहिए। इतनी बड़ी धरोहर के दर्शन से वंचित होना दुखद है।
पहल करे सरकार : डॉ. प्रदीप
डॉ. प्रदीप अग्रवाल ने दैनिक जागरण द्वारा अक्षयवट को लोगों के दर्शनार्थ खोलने की मुहिम का समर्थन करते हुए कहा कि यह जनभावनाओं से जुड़ा मुद्दा है। सरकार को मुद्दे पर ठोस पहल करनी चाहिए। इसमें जितना विलंब होगा, लोगों की भावनाएं उतनी आहत होंगी।
श्रद्धालुओं को सौंपे अक्षयवट : अनूप
समाजसेवी अनूप अक्षयवट को अमूल्य धरोहर बताते हुए उसके संरक्षण की बात कहते हैं। उन्होंने मांग की कि अक्षयवट का संरक्षण करने के साथ आम श्रद्धालुओं के दर्शन-पूजन के लिए इसे खोला जाए, ताकि हर व्यक्ति दर्शन-पूजन कर सके।
पूरी करें इच्छा : पतविंदर
समाजसेवी सरदार पतविंदर सिंह कहते हैं कि अक्षयवट का दर्शन अवश्य कराया जाए। ऐसे कालजयी वट को कैद करने का कोई औचित्य नहीं है। सेना को कुंभ से पहले अक्षयवट को दर्शन-पूजन की व्यवस्था सुनिश्चित करानी चाहिए। सरकार इसमें दखल दे।
मुश्किल से हो पाया था दर्शन
किले के भीतर मूल अक्षयवट का दर्शन प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे भी मिला है, लेकिन बड़ी मुश्किल हुई थी। सैनिक संरक्षण में कई अधिकारियों की अनुमति से उसका दर्शन सुलभ हो सका था। पहली बार तो अंतिम गेट तक जाकर भी तीसरे अधिकारी की अनुमति न होने के कारण वापस हो गए थे। फिर बाद में एक प्रशासनिक अधिकारी के सहयोग से मुझे परिवार सहित अक्षयवट दर्शन का लाभ मिल सका था। तने पर जलाए जाने का चिह्न भी दिखाई पड़ रहा था। किले की दक्षिणी प्राचीर से सटा हुआ वटवृक्ष का आधा हिस्सा प्राचीर के यमुना तट की ओर भी लटकता हुआ दृष्टिगत होता है।
-डॉ. राजेंद्र त्रिपाठी 'रसराज', संस्कृत विद्वान