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आप भी जानें, 109 साल पहले संगम नगरी से शुरू हुई थी हवाई डाक सेवा Prayagraj News

109 साल पहले संगम नगरी से हवाई डाक सेवा शुरू हुई थी। कुंभ के दौरान करीब एक लाख लोगों ने यह ऐतिहासिक उड़ान देखी थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 04:02 PM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 04:02 PM (IST)
आप भी जानें, 109 साल पहले संगम नगरी से शुरू हुई थी हवाई डाक सेवा Prayagraj News
आप भी जानें, 109 साल पहले संगम नगरी से शुरू हुई थी हवाई डाक सेवा Prayagraj News

प्रयागराज, [गुरुदीप त्रिपाठी]। देश में चिट्ठियों के हवाई सफरनामे का इतिहास 18 फरवरी 2020 की तारीख को 109 साल पुराना हो गया। यह जानकारी गिने चुने लोगों तक ही सिमटी रही कि 18 फरवरी 1911 को पहली बार संगम नगरी ही हवाई डाक सेवा की साक्षी बनी थी। संयोग से उस दौरान कुंभ का आयोजन था। करीब एक लाख से ज्यादा लोगों ने डाक लेकर बमरौली से उड़कर नैनी तक पहुंचे विमान को देखा था।

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छह नॉटिकल मील की यह दूरी कुल 27 मिनट में पूरी हुई थी

दुनिया भर में आज हवाई सेवा के जरिए खतों का इधर से पहुंचाया जाना आम है। अब तो कोरियर वाले भी हवाई सेवा को प्राथमिकता देते हैैं। कम ही लोग इस गौरवशाली अतीत से परिचित हैैं कि प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) इस मामले में सौभाग्यशाली रहा है। ब्रिटिश एवं कालोनियन एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में इस डाक पहुंचाने वाले विमान को जनता के बीच प्रदर्शन के लिए भेजा था। पायलट थे फ्रांस केएम पिकेट। वह हैवीलैंड एयरक्रॉफ्ट में बमरौली से नैनी के लिए 6500 पत्रों को लेकर उड़े। छह नॉटिकल मील की यह दूरी कुल 27 मिनट में पूरी हुई थी। दोपहर तक खतों की बुकिंग हुई।

खतों के लिए विशेष शुल्क छह आना था

पहली हवाई डाक सेवा के जरिए भेजे गए खतों के लिए विशेष शुल्क था, कुल छह आना। इससे हुई आय ऑक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल को दान में दी गई।  डाक विभाग की ओर से इस अतीत की याद में वर्ष 2011 में शताब्दी समारोह भी आयोजित किया था। तब विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया था।

ठंठीमल घोड़ा गाड़ी से लाते थे डाक

एक और दिलचस्प तथ्य भी है संगम नगरी में 'चिट्ठी युग' की। शहर के कारोबारी लाला ठंठीमल ने डाक विभाग के गठन से 13 साल पहले 1841 में ही डाक सेवा की शुरुआत कर दी थी। उन्होंने 1850 में 'इन लैंड ट्रांजिट कंपनी' बनाई। इसे अंग्रेजों ने भी मान्यता दी। वर्ष 1854 में गठित एकीकृत विभाग में मर्ज कर लिया गया। ठंठीमल ने इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज से) कानपुर के बीच घोड़ा गाड़ी से डाक सेवा शुरू की।

जीटी रोड बनने के बाद सात किलोमीटर की दूरी घोड़ा गाड़ी तथा पालकी से तय होती थी। फिर बिठूर तक का सफर नाव से तय किया जाता था। सुरक्षा के लिहाज से ठंठीमल कमर में घंटी बांध कर और भाला लेकर चलते थे। आधा तोला वजन की डाक के लिए शुल्क था एकन्नी (एक पैसा)। तो कह सकते है कि डाकिया डाक लाया सौ साल पहले भी था।


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