कृषि वैज्ञानिक बोले-खेत में खरपतवार न बढ़ने दें, इससे लाही की उपज में 30 फीसद की हो जाती है कमी
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस काम में किसानों को किसी तरह की कोताही नहीं करनी चाहिए। समय-समय पर नई तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए उपज को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। थोड़ी सी भी लापरवाही से ऊपर की प्रतिशत घट जाती है।
प्रयागराज, जेएनएन। नैनी स्थित सैम हिग्गिनबाॅटम कृषि, प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कृषकों को सलाह दी है। उनका कहना है कि लाही की बोआई के 15-20 दिन पर और हर हालत में सिंचाई के पहले पौधों की छंटाई कर लें। पौधे घने होने और खरपतवार बढ़ने से लाही की उपज में 20-30 प्रतिशत की कमी हो सकती है। घने पौधों को निकालकर पौध से पौध की दूरी 10-15 सेंमी कर लें।
कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि इस काम में किसानों को किसी तरह की कोताही नहीं करनी चाहिए। समय-समय पर नई तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए उपज को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। थोड़ी सी भी लापरवाही से ऊपर की प्रतिशत घट जाती है। बताया कि गेहूं के प्रमाणित और शोधित बीज ही बोएं। शोधित बीज के बोने से उपज की मात्रा काफी बढ़ जाती है। यदि बीज शोधित न हो तो प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम से शोधित कर लें। इस विधि से भी ऊपर को बढ़ाया जा सकता है।
कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्र होने की दशा में जौ की बोआई 15 नवंबर तक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा बुंदेलखण्ड के इलाके में 15-30 नवंबर के मध्य अवश्य पूरी कर लेनी चाहिए। अक्टूबर में बोए आलू की सिचाई करें। बोवाई के 25-30 दिन बाद 87-108 किग्रा यूरिया की टाप ड्रेसिंग करके मिटटी चढ़ा देनी चाहिए। मिट्टी चढ़ाने से आलू की पैदावार काफी अच्छी हो जाती है। साथ ही काफी हद तक उसे पाने से भी बचाया जा सकता है।