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एक नोटिस ने झुका दी अंतरराष्ट्रीय मूछ नर्तक की मूछें

इलाहाबाद : महज तीन इंच की गीता और कुरान। गंगा से लेकर मक्का के जमजम का पवित्र जल। कबाड़ टेलीविजन से लेकर माचिस की डिबिया और देश-विदेश के डाक टिकट। जी हां, दारागंज के एक छोटे से कमरे में अंतर्राष्ट्रीय मूछ नर्तक राजेंद्र तिवारी उर्फ दुकानजी का ये अद्भुत संग्रहालय है। दूसरों के लिए यह महज एक संग्रहालय हो सकता है, मगर दुकानजी के जीवन की यही पूंजी है। इसे रोज सींचना ही उनका ख्वाब है, इस ख्वाब पर अब नगर निगम का बुलडोजर चलने वाला है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 06:05 AM (IST)Updated: Fri, 29 Jun 2018 06:05 AM (IST)
एक नोटिस ने झुका दी अंतरराष्ट्रीय मूछ नर्तक की मूछें
एक नोटिस ने झुका दी अंतरराष्ट्रीय मूछ नर्तक की मूछें

इलाहाबाद : महज तीन इंच की गीता और कुरान। गंगा से लेकर मक्का के जमजम का पवित्र जल। कबाड़ टेलीविजन से लेकर माचिस की डिबिया और देश-विदेश के डाक टिकट। जी हां, दारागंज के एक छोटे से कमरे में अंतर्राष्ट्रीय मूछ नर्तक राजेंद्र तिवारी उर्फ दुकानजी का ये अद्भुत संग्रहालय है। दूसरों के लिए यह महज एक संग्रहालय हो सकता है, मगर दुकानजी के जीवन की यही पूंजी है। इसे रोज सींचना ही उनका ख्वाब है, इस ख्वाब पर अब नगर निगम का बुलडोजर चलने वाला है।

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मूछों के दम पर लिम्का और गिनीज बुक रिकार्डधारी दुकानजी इलाहाबाद के चिर परिचित चेहरा हैं। गलियों में ठेला लगाने वाले से लेकर कलेक्टर-कमिश्नर तक उन्हें भली भांति पहचानते हैं। अफसरों, नेताओं, संस्थाओं और मंत्रियों से मिले सैकड़ों तमगे भी उनके संग्रहालय की शोभा हैं, मगर, महानिर्वाणी अखाड़े के विशाल भवन में किराए के कमरे में आबाद इस संग्रहालय को अब बेदखल किया जाएगा। नगर निगम ने इस भवन को जर्जर घोषित करते हुए ध्वस्तीकरण नोटिस जारी किया है। अखाड़े की ओर से भी दुकानजी को कमरा खाली करने का हुक्म मिल गया है।

चेहरे पर थिरकती मूछें और खिलंदड़ मुस्कान वाले दुकानजी के चेहरे की ये दोनों पहचान इस नोटिस के बाद गायब हैं। मूछें मानो झुक गई हैं और चेहरे पर मुस्कान के बजाय आंखों में पानी झिलमिलाता दिखता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर अपना संग्रहालय बचाने की गुहार लगाई है। सारा जीवन समाजसेवा को समर्पित कर देने वाले दुकानजी इसलिए भी ज्यादा मायूस हैं कि स्वच्छता अभियान से लेकर कुंभ तक उनकी मुफ्त सेवाएं लेने वाले अफसर भी इस मुसीबत में उनकी नहीं सुन रहे हैं।

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ऐसे नाम पड़ा दुकानजी

दुकानजी को बचपन में परिवारीजन गोपाल पुकारते थे। उनके पिता दारागंज में निराला पुस्तक भंडार पर बैठते थे। वहीं हंसमुख प्रवृत्ति के दुकानजी बाहर बैठकर कार्टून बनाया करते थे। राजनीतिक रैलियों पर उनके कार्टून केंद्रित होते थे और उसमें वे दुकानजी, मकानजी और सामानजी आदि शब्दों का प्रयोग करते थे। दुकानजी शब्द के ज्यादा इस्तेमाल के कारण धीरे-धीरे लोग उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे।

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ये मेरा संग्रहालय नहीं है, जीवन भर की कमाई है : दुकानजी

राजेंद्र तिवारी उर्फ दुकानजी ने बताया कि ये मेरा संग्रहालय नहीं है, मेरे जीवन भर की कमाई है। मेरा कोई निजी परिवार नहीं, ये शहर ही मेरा परिवार है। मगर मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि ये संग्रहालय टूट जाएगा। मेरे सिर से छत छिन जाएगी। भला इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा?'


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