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प्रतापगढ़ के पुस्तकालयों में अध्ययन को पहुंच रहे हैं बड़ी संख्या में पाठक

प्रतापगढ़ में जिले में सरकारी व गैरसरकारी पुस्तकालय हैं। कई साहित्यकारों अधिवक्ताओं व रंगकर्मियों ने अपने घर में पुस्तकालय सहेज रखे हैं। नई पीढ़ी आनलाइन पुस्तकें पढऩे में रुचि ले रही है। कविवर डॉ. हरिवंश राय बच्चन के नाम से उनके पैतृक गांव रानीगंज के बाबूपट्टी में भी पुस्तकालय है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 03:01 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 03:01 PM (IST)
प्रतापगढ़ के पुस्तकालयों में अध्ययन को पहुंच रहे हैं बड़ी संख्या में पाठक
प्रतापगढ़ में कई निजी पुस्‍तकालय लोगों ने घरों में बनाए हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रतापगढ़ शहर में स्थापित राजकीय जिला पुस्तकालय में बढ़ती पाठक संख्या सुखद लगती है। देखा जाए तो किताबें सबकी सच्ची दोस्त होती हैं। वह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं। उनको पढ़ना चाहिए। स्वाध्याय को हर महान व्यक्ति ने जरूरी बताया है। इस दिशा में प्रतापगढ़ के लोगों का पुस्तक प्रेम उल्लेखनीय है। साहित्य लेखन के जरिए किताबों से नजदीकी और बढ़ रही है।  

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बढ़ी है पुस्तकालयों की संख्या

जिले में सरकारी व गैरसरकारी पुस्तकालय तेजी से बढऩा सुखद है। कई साहित्यकारों, अधिवक्ताओं व रंगकर्मियों ने अपने घर में पुस्तकालय सहेज रखे हैं। नई पीढ़ी आनलाइन पुस्तकें पढऩे में रुचि ले रही है। यहां पर कविवर डॉ. हरिवंश राय बच्चन के नाम से उनके पैतृक गांव रानीगंज के बाबूपट्टी में भी पुस्तकालय है। इसकी नींव बच्चन जी की बहू जया बच्चन ने 16 साल पहले इस गांव में आकर रखी थी। जिले में इस तरह के प्रयास हर किसी को प्रेरित करते हैं कि हम भी पढ़ें और ज्ञान के चार आखर गढ़ें।

राजकीय पुस्तकालय में जुटते हैं पाठक

जिला मुख्यालय पर राजकीय जिला पुस्तकालय है। यह करीब 20 साल पुराना है। समय के साथ इसने अपने को संवारा है यानि अपडेट हुआ है। इसमें 800 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें कक्षा छह के छात्र से लेकर डाक्टर व अधिवक्ता तक शामिल हैं। वह किताबें ले जाकर पढ़ते हैं और फिर जमा कर देते हैं। साथ ही सैकड़ों लोग सुबह से शाम तक यहीं पर बैठकर पत्र पत्रिकाएं पढ़ते हैं। यहां पर आनलाइन पुस्तकें पढऩे की भी सुविधा है। इस पुस्तकालय का लाभ स्कूली बच्चे बिना किसी खर्च के उठाते हैं।

खुद पढ़ते हैं और दोस्तों को भी कर रहे प्रेरित

यहां से प्रेरणा लेकर कवि व समीक्षक दयाराम मौर्य रत्न ने अपने कमरे में सृजना पुस्तकालय बनाया है। इसमें वह तो पढ़ते ही हैं, पास पड़ोस के लोग भी ज्ञान लेने को आते हैं। इसमें साहित्य, इतिहास सहित विषयों पर तमाम नई-पुरानी किताबें लोगों को मिल जाती हैं। डा. मौर्य इसे ज्ञान का मंदिर बताते हैं। उनका प्रयास रहता है कि हर दिन कोई न कोई किताब उनके संग्रह में बढ़े। छात्र अवनीश प्रताप कहते हैं कि किताबों को पढऩे से जो ज्ञान मिलता है वह स्थाई होता है। समय कम होने से हम अपने मोबाइल पर आन लाइन पुस्तकें पढ़ते हैं। अपने दोस्तों का एक ग्रुप बनाकर उनको भी किताबों का महत्व बता रहे हैं।


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