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संजीवनी

By Edited By: Published: Sun, 13 Nov 2011 06:08 PM (IST)Updated: Sun, 13 Nov 2011 06:08 PM (IST)
संजीवनी

हेपेटाइटिस का आयुर्वेदिक निदान

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यकृत शरीर का महत्वपूर्ण अंग है। इसमें किसी भी प्रकार की विकृति से पूरा शरीर प्रभावित होता है। हेपेटाइटिस नामक बीमारी से यकृत में सूजन आ जाती है, जिससे यह अंग अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाता है।

कारण

-विषाणु जन्य संक्रमण।

-अत्यधिक मद्यपान।

-कुछ विशेष औषधियों का अधिक सेवन करना।

-एलर्जी की प्रतिक्रिया।

-विषाणु के कारण होने वाले हेपेटाइटिस में लक्षण तीव्र प्रकार के होते हैं, इसकी शिकायत होने पर तत्काल चिकित्सक के पास जाना चाहिए।

लक्षण

-प्रारंभ में फ्लू के समान ज्वर आता है।

-भूख में कमी।

-मिचली एवं उल्टी।

-मूत्र का पीला होना।

-आंख और नाखूनों का रंग पीला होना।

-थकान बना रहना।

चिकित्सा

आयुर्वेद में अनेक ऐसी औषधियां हैं जिनका यकृतशोथ में सफलता पूर्वक प्रयोग किया जाता है।

-मुलेठी : इसका प्रयोग जीर्ण हेपेटाइटिस बी में अत्यंत लाभदायक होता है। इसमें पाया जाने वाला तत्व ग्लाइसेराइनिक एसिड एसजीओटी और एसजीपीटी के स्तर को कम करता है। लिकोराइस कीमोथेरेपी के दुष्प्रभाव को भी कम करता है।

-गुडूची : एल्कोहलिक लीवर में इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी होता है।

-चुकंदर : इसका नियमित प्रयोग यकृत कोशिकाओं के पुननिर्माण में सहायक होता है।

-दारूहल्दी : यह यकृत की क्रियाशीलता को बढ़ाता है।

-मृंगराज : इसमें पाए जाने वाले वेडिलोलेक्टॉन और डाइमिथाइल वेडिलोलेक्टॉन नामक तत्वों में एंटी हेपेटोटॉक्सिक गुण होता है।

सेवन न करें

-अधिक तैलीय भोज्य पदार्थ।

-बेकरी में बने भोज्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक आदि।

-मद्यपान।

सेवन करें

अच्छी तरह साफ किए गए फल और कच्ची सब्जियां।

-जिंक 50 मिग्रा. प्रतिदिन।

-काली मूली।

-हरीचाय

डॉ. ऊषा द्विवेदी

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