Health Department: इतने संवेदनहीन हुए प्रतापगढ़ के स्वास्थ्य अधिकारी, धूप में खड़ा करा दिया दिव्यांगों को
दिन के साढ़े 12 बजे धूप तेज थी। उमस ने बेहाल कर रखा था। लोग छांव की तलाश में थे। इसी दौरान तमाम दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सीएमओ कार्यालय में धूप में खड़े रहे। वह संवेनदहीन व्यवस्था को कोसते रहे। मीरनपुर से आए नान्हूं लाठी के सहारे खड़े थे।
प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। एक तो दिव्यांगता और ऊपर से सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता। ऐसे में दिव्यांग लोगों को दुख और निराशा झेलनी पड़ती है। शासन स्तर से तो योजनाएं लागू कर दी जाती हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य विभाग के अधिकांश अफसर और कर्मी उनके प्रति सम्मान और मानवता का भाव नहीं रखते। सोमवार को प्रतापगढ़ सीएमओ कार्यालय में ऐसा ही देखने को मिला। मानवता शर्मसार होती दिखी। प्रमाण पत्र बनवाने के लिए दूर-दूर से आए दिव्यांगों को धूप में लाइन में खड़ा कर दिया गया।
लाठी के सहारे तेज धूप में झेलते रहे परेशानी
दिन के साढ़े 12 बजे धूप तेज थी। उमस ने बेहाल कर रखा था। लोग छांव की तलाश में थे। इसी दौरान तमाम दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सीएमओ कार्यालय में धूप में खड़े बिलबिलाते रहे। वह संवेनदहीन व्यवस्था को कोसते रहे। मीरनपुर से आए नान्हूं लाठी के सहारे किसी तरह खड़े थे। तेज धूप उनको बेहाल कर रही थी। प्रमाण पत्र भी जरूरी था, इसलिए लाइन से हट नहीं सकते थे। शहर के सदर बाजार का तारिक भी इस व्यवस्था से परेशान नजर आया। धूप को झेलकर बेहाल इन दिव्यांग ने कहा कि यह कौन सी मानवता है कि दिव्यांगों को धूप में खड़ा करा दिया गया। चंद्रभानपुर पट्टी की चमेला देवी हाथ में ओपीडी का पर्चा लेकर लाइन में खड़े होकर परेशान हो रहीं थी। बाबू की टेबल तक पहुंचने के लिए परेशान थी। धूप से उनका हाल बेहाल था। इसी प्रकार राम प्रसाद, संजय कुमार, सुहागा देवी, शिवकुमार, रमजान, नन्हे लाल समेत कई दिव्यांग लाइन में खड़े-खड़े इतने परेशान हो गए कि लगा कि गश खाकर अब गिरे-तब गिरे। कई लोग तो लाइन से हटकर छांव में चले गए। कहने लगे कि जान रहेगी तो प्रमाणपत्र फिर कभी बनवा लेंगे। कुछ देर बाद किसी ने सीएमओ डा. एके श्रीवास्तव को दिव्यांगों की इस परेशानी की जानकारी दी तो उन्होंने सबको अंदर करवाया। साथ ही गेट पर तैनात कर्मचारी को कड़ी फटकार भी लगाई।
अब जाओ लखनऊ...
पट्टी तहसील क्षेत्र के ढकवा से शेर बहादुर अपने भाई सचिन वर्मा को लेकर आए थे। सचिन बोल नहीं पाता है। इसे दिव्यांग प्रमाण पत्र बनवाने के लिए लाइन में धूप में खड़ा कर दिया गया। बाद में पता चला कि मूक-बधिर केस की जांच यहां नहीं होती। उसे लखनऊ जाना पड़ेगा। यह सुनकर वह निराश हो गया।